मायड़ भासा रा संस्कार जरूरी: विनोद सारस्वत



भासा बरतता तौ सदां पण कोरणी कद सीखी?
पढी हिंदी पण मायड़ भासा तौ रूं-रूं में बस्यौड़ी ही। कविता सूं बाळपण सूं लगाव रैयौ। राजस्थानी कविता सीधी हीयै में ढूकती। बाळपण में कानदानजी कल्पित री कविता ‘उठण दै हबीड़ौ बेली बीड़ौ’ जबरी लागती। जदकै उण बगत रा हिंदी गाणां रा बोल पल्लै नीं पड़ता। अमिताभ बच्चन री उण बगत री सुपर हिट फिल्म ‘डॉन’ रौ अेक गीत खाईके पान बनारस वाळा रै खाईके नैं म्हैं खाई ही समझतौ। इण रौ अरथ खावण सूं है औ म्हनै घणा बरस पछै ठाह पड़यौ। सन् 1982 रै आसै-पासै जद म्हैं आठवीं क्लास में पढतौ उण बगत मायड़ भासा राजस्थानी री पत्रिका ‘माणक’ नोखा रै बस स्टैंड माथलै बुक स्टॉल माथै मिलती। पैली निजर में ही
‘माणक’ म्हारी पसंद बणगी। उण में अेक थंब आवतौ ‘पत्र-मित्रता’। उण में दो बार म्हारा फोटू छप्या अर म्हैं भी छोटा-मोटा कागद-पतर अर चुटकला लिखणां सरू कर दीन्हा। ‘माणक’ रौ अेक-अेक आखर बांच्या बिना नीं रैंवतौ। इण भांत पैलीपौत मायड़ भासा री बांच सूं सैंध हुयी अर हिवड़ै में हेत रौ समंद हबोळा लेवण ढूकग्यौ। इण पछै सन् 1984 में मैट्रिक पछै आसाम रै जोरहाट री जेबी कॉलेज में आगै री पढाई करी। पढाई सूं बेसी मन पढण-लिखण में रैंवतौ। नित रा अेक गेड़ौ बुक स्टॉल माथै लागतौ अर जकी किताब दाय आयगी उणनै खरीद लेवतौ। इण पछै अन्नारामजी सुदामा रा राजस्थानी उपन्यास ‘मैकती काया मुळकती धरती’, ‘मैवे रा रूंख’, ‘घर-संसार’ पढ्या। राजस्थानी में ‘माणक’ अर हिंदी में ‘जनसत्ता’ म्हैं नैमसर पढतौ। सन् 1987 में म्हैं 15 दिन खातर मद्रास गयौ तौ वठैई म्हनैं ‘माणक’ मिलगी। माणक रै उणी अंक में म्हारा चुटकला छप्या। म्हारी अेक पेवटी हुवती जिण में म्हारा करेड़ा लीक-लकोळियां नै संभाळनै राखतौ। अेक दिन पिताश्री री निजरां उण माथै पड़गी। वै म्हनै तौ कीं नी कैयौ पण म्हारै काकै रा बेटा भाई बिरजू भाई नै कैयौ कै औ तौ इण ऊंधै मारग माथै चाल रैयौ है। म्हनैं रीस आई तौ म्हैं वै कागदिया बाळ न्हाख्या। इण पछै पढाई रै सागै पत्रकारिता में डिप्लोमौ कर्यौ। वीं बगत सन् 1989 में आसाम सूं हिंदी दैनिक ‘पूर्वांचल प्रहरी’ सरू हुयौ, जिणमें म्हनैं जिला संवाददाता सरूप कांम करण रौ मौकौ मिलग्यौ। असमिया भासा माथै ई म्हारी पकड़ सांवठी हुयगी। असमिया साहित्य अर पत्र-पत्रिकावां पढण लागग्यौ। अठीनै आसाम में अल्फा रा उग्रवादी आंदोलन दिनूंदिन आपरी गति पकडै़ हौ। वीं बगत ‘माणक’ में अेक लांबौ लेख लिख्यौ ‘असम में आतंक री आग’, अेक फीचर एजेंसी रै जोग वीं बगत भारत रा 20-30 हिंदी अखबारां में म्हारौ अेक और लेख छप्यौ। ‘अल्फा जेवीपी के नक्शेकदम पर’। सन् 1990 में आसाम में राष्ट्रपति शासन लागग्यौ। उणी दिन ‘पूर्वांचल प्रहरी’ रै संपादकीय पेज में ‘आसाम में राष्ट्रपति शासन खतरे की घंटी’ छप्यौ। इणरै केई दिनां पछै ‘आॅपरेशन बजरंग अर अल्फा’ नांव सूं अेक और बडौ लेख ‘पूर्वाचल प्रहरी’ रै संपादकीय पेज माथै छप्यौ। 
‘मायड़ रो हेलो’ रै मारफत आप कद ऊभा हुया? 
अेक बाप रौ मन चावतौ कै बेटौ वांरै काम धंधै नै संभाळै। पत्रकारिता रै इण काम में वै जोखिम मानता। सो, वां म्हारी बीकानेर री टिकट कटायनै अेक आॅटो पार्टस री दुकान खोलायनै बैठाय दीन्हौ। असम आंदोलन री छाप म्हारै हिवड़ै में अेकदम रमगी। असमिया भासा में इत्ता दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक देखतौ अर मायड़ भासा मे फगत अेक ‘माणक’, उणरी ई अबै गाडी चीलां सूं उतरण ढूकगी ही। मायड़ भासा री पीड़ देखनै बीकानेर सूं सन् 1993 में अखबार निकाळण री तेवड़ करी। केई बार टाईटल दिल्ली भेज्या। पण मिल्या कोनीं। छेवट अेकदिन आरएनआई रौ वौ मूंघौ कागद आयग्यौ, जिणमें ‘मायड़ रो हेलो’ नांव रौ टाईटल अलाॅट हुयौ हौ। इणभांत सन् 1994 में ‘मायड़ रो हेलो’ सरू हुय सक्यौ। कन्हैयालालजी सेठिया रौ बधाई संदेश आयौ, जिणमें वां आपरी पोथी ‘मायड़ रो हेला’े म्हनै भेजी। इणसूं पैली म्हनै औ ध्यांन कोनी हौ कै कन्हैयालालजी सेठिया री इण नांव सूं कोई पोथी छप्यौड़ी है। इण पछै तौ लठ कड़ाकड़ घर फूंकनै तमासौ देखण रौ काम ‘मायड़ रो हेलो’ चाल पड़्यौ। जवानी रौ जोस अर हूंस रैयी, जित्त्ै गिरतां-पड़तां-आखड़तां इणरौ निभाव करतौ रैयौ। पण भुवाजी बारकर फिरण लागगी। घर-गृहस्थी री जिम्मदारियां ओळै-दोळै घूमण लागगी। टाबर बडा हुवण लागग्या तौ मन मारनै अखबार रौ कांम बंद करणौ पड़्यौ।  
कैड़ा तजरबा रैया?
अखबार रा तजरबा घणां ई रैया। मोर थापणियां तौ घणां ई मिल्या पण इण मोरां में पड़्या घावां नै पंपोळणणियौ कोई कोनीं मिल्यौ। 
किणी संपादक नै जे औ बूझीजै कै वौ रचनाकार सूं छापै री मांग मुजब लिखवाय सकै कै?
आज रै इण व्यावसायिक जुग में मांग मुजब लिखवावणौ कोई अबखौ कांम कोनीं। राजस्थानी नै टाळनै दूजी सगळी भासावां में ओ प्रयोग घणै ठरकै रै सागै चाल रैयौ है। जिकौ पीसा देयसी वौ पिसाई तौ आपरै मत्तै करवायसी ई। 
केई छद्म नांवां सूं ई मांग-मुजब लिखणौ पड़तौ हुयसी?
आ कोई नवादी बात कोनीं। जठै सिंगलमेन आर्मी संपादक हुवै उठै घणी बार छद्म नांव सूं लिखणौ पड़ै। मांग अर मांग रै परबार ई माल बेचणौ पड़ै। कागद तौ काळा करणां ई पड़ै, बिना भाखर छापौ कीकर छपै? बैलै नांव सूं बेगार ही चोखी, विज्ञापन नीं मिलै तौ मुफ्त रा विज्ञापन भी फिलर रै सरूप छापणां पड़ै।
आज जद राजस्थानी छापां कांनी देखौ तद के लागै? 
राजस्थानी में छापां री कमी घणी ही अखरै। अखबार नै जे चलावणौ चावै तौ वै उद्योगपति ई चला सकै। समूची व्यावसायिक योजना रै सागै कोई व्यापारी आ खेचळ करै तौ राजस्थानी अखबार भी चाल सकै। पण औ जोखौ लेवण री हीम्मत आज तकात कुणई कोनीं करी। म्हारै जिस्सा लोग म्हारै टाळनै दूजा लोग, जे आ हूंस अर हीम्मत राखै तौ अखबार निकळ सकै अर चाल सकै। म्हैं भ्ई अेकर फेरूं आ हीम्मत करसूं। 
आधुनिक लेखन नै कियां परखौ?
आधुनिक राजस्थानी लेखन री हालत घणी माड़ी है। राजस्थानी में साहित्य सिरजण तौ लगौलग हुवै है पण इण में पाठकां रौ जाबक ई तोड़ौ है। इण खातर जरूरी है राजस्थानी में केई छापा निकळै। इणरै परबार आज इलैक्ट्रोनिक मीडिया रौ जमानौ है, राजस्थानी भासा रौ आपरौ चैनल आज री ताती जरुत है। लोगां में मायड़ भासा राजस्थानी री हूंस जगावै। आज च्यारूं कांनी सून बापर्योड़ी है। इण सून अर मून नै तोड़ण सारू डाढा जतन करणा पड़सी। हरेक रै मन में मायड़ भासा री पीड़ अर हेत कीकर संचरै, इण माथै विचार घणौ जरूरी है। जद ई इण आज रै लेखन री सार्थकता है। बाकी 200-500 पड़तां आपसरी में अेक-दूजै री पढलै, समीक्षा करलै अर पुरस्कार लेयनै मोदीज जावै। इणसूं भासा अर साहित्य रौ कीं भलौ नीं हुय सकै। 
मानता विहूणी भासा में लिखारौ लिखै, इणनै के समझौ?
मानता विहूणी भासा में लिखणौ, लखदाद है वां लिखारां नै जका इण भासा में लिखै। भासा री मानता ताती जरुत है। मानता मिल्यां सूं  केई नवा मारग खुलसी। आज राज जिण भासा नै मानै कोनीं अर पाठक है कोनीं, फेर ई लिखणौ नीं छोडणौ, भासा नै बचावण रौ अेक लूंठौ जतन कैयीज सकै। आज री जरुत ई है कै सांस्कृतिक संक्रमण रै दौर में आपणी भासा नै बचावणी। पीढी-पीढी पीर जागै, इणी भांत राजस्थानी में भी लिखारां री नवी फौज आवती रैवणी चाहीजै। बडेरां नै अेक दिन जावणौ ई जावणौ पण आवणवाळी पीढी नै भासा साहित्य रा संस्कार मिलणा ई चाहीजै। राजस्थानी में लगौलग साहित्य सिरजण इण बात रौ प्रमाण है कै औजूं अे सीर-संस्कार चूक्या कोनीं। 
केई लोग तोपधारी बणणै राजस्थानी में आवै, तपधारी नीं बणणौ चावै? वांरी ओपमा कैड़ी? 
हरेक खेतर में तोपधारी अर तपधारी हुवता आया है ,राजस्थानी साहित्य ई इणसूं अछूतौ कोनीं। जिण भांत दूजी ठौड़ अै दोवूं ई चालै तौ राजस्थानी में भी कांई अड़कांस है? हरेक री आपरी हटोटी हुवै अर वै उणी मत्तै कांम करै। कोई तोपधारी बणनै आप तिर जावै तौ दूजी कांनी तपधारी आपरै तप पांण भासा साहित्य नै तार देवै। तोपधारी तौ पांणी रै ऊपरला वै बुलबुला है, जका अेकर बुलबुलावै अर पछै स्यांत हुय जावै। 
खासकर युवा लिखारां पांण राजस्थानी री बात करां, तौ आप के कैयसौ? 
आज रा युवा लिखारा ई कालै रा भाग्य विधाता बणसी। राजस्थानी री समूळी हेमांणी नै बंचानै राखण री जिम्मेदारी इणांरै कांधा माथै ई है। जूनी रीत-परंपरावां नै आज रै ढंगढाळै में ढाळनै परोटणी युवा लिखारां रै साम्हीं अेक लूंठी चुनौती है। मन री पीड़ अर हूंस नै अेकाकार करनै धक्कीनै बधणौ पड़सी। भासा नै ई हथियार बणायनै आवण वाळी अबखायां सूं लड़णौ पड़सी। निमळाई री जूंनी रीत नै तोड़नै कमठाई सूं नवा पगलिया नापणां पड़सी। 
आपरी कीं योजनावां? 
म्हारी इणी योजना रै पेटे म्हैं ‘मायड़ रो हेलो’ नै पाछौ सरू करण री तेवड़ करी है। आज अेक-अेक घर सूं मायड़ भासा टूट रैयी है। नवी पीढी आपरै सीर-संस्कारां सूं चूक रैयी है। आज मान्यता सूं बडौ कांम भासा नै बचावण रौ है। देस अर परदेस में नवी सरकार बणी है, जिण सूं अेक आस जागी है कै राजस्थानी नै बैगी ही मानता मिलसी। नींतर अखबार रै माध्यम सूं अेक नवौ आंदोलन खड़्यौ करसां।
संदेश?
म्हैं सगळा राजस्थानी लोगां सूं आ ही अरज करणी चावूं कै थे सौ-कीं भूलजौ पण आपणी मायड़ भासा नै कदैई मत्ती भूलजौ। आपरा नान्हा-नान्हा टाबर किणी परायै भासा माध्यम सूं पढै। पण आधुनिकता री आंधी दौड़ में वांनै मायड़ भासा सूं आंतरै मती करीजौ। वांनै घर में मायड़ भासा रा संस्कार जरूर दीजौ।



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