म्हारौ ध्येय के राजस्थानी में चोखी चीज आवै : चेतन स्वामी


बंतळ-


राजस्थानी भासा रा नामी कथाकार, कवि, संपादक, अनुवादक डाॅ. चेतन स्वामी आपरी न्यारी-निकेवळी पिछांण राखै। वांसूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ अठै दीरीजै।

आपरी रचाव जातरा कठै सूं सरू हुयी?
टाबरपणै सूं ई पढण री बांण ही। छठी-सातवीं में पढतौ तद ई साहित्य बांचण लागग्यौ। आ नीं के आ फगत म्हारी बांण ही, वीं बगत आ सगळां री रुचि ही। क्यूंकै मंनोरंजन रौ औ ई अेक साधन हौ। टीवी जुग नीं आयौ हौ। म्हारै वीं पढाव में बेसी किस्सा अर कहाणी ई हुवता। आगै चालनै म्हैं पुस्तकां रै ब्यौपार सूं जुड़îौ। च्यारूंमेर किताबां खिंडी रैवती।  इणी कारणै साहित्य और बेसी पढीजौ। वीं बगत ई ‘मरुवाणी’ अर ‘ओळमें’ रा अंक साम्हीं आया। वांनै कौतुहल सूं बांच्या। पण वौ ई कौतुहल कद जरूरत बणग्यौ, ठाह ई नीं लाग्यौ। आपणी बात, आपणी बात में लिखेड़ी हुवती। 
म्हारौ बडभाग औ ई रैयौ के बालवय में ई किशोर कल्पनांकांत सूं मिलणौ हुयौ। वै दिव्य अर महान पुरख भांत लाग्या। वांसूं मिलनै आयां पछै लाग्यौ जांणै देवता रा दरसण करनै आयौ हुवूं। वै सोळह-सतरह बरस रै टाबर नै ई ‘आप’ कैयनै बतळावता। बरौबर बैठावता। जबरौ आदर, सतकार अर अपणापौ देंवता। अभिभूत हुयौ। पछै तौ वांरी सोवणी हैडंराइटिंग में कागद ई आवण लागग्या। पछै बीजै साहित्यकारां सूं ई मिलणौ हुयौ। कथाकार बैजनाथजी पंवार सूं ई मिल्यौ। वांरी सगळी कहाणी लगैटगै याद ही। कथाकार नृसिंह राजपुरोहित सूं ई जुड़ाव हुयौ। इणी बिचाळै चोखी बात ही के श्रीडूंगरगढ रौ पुस्तकालय सिमरध हौ। वठै श्याम महर्षि रौ ई सागौ मिल्यौ। बीस साल रौ हुयौ तद तांणी तौ ‘राजस्थली’ पत्रिका रौ कांम देखण लागग्यौ। 
राजस्थानी साहित्य नै किण भांत देख्यौ?
आज लोग चावै बियां कांम करै। पण वीं बगत अेक लय ही। नवी कविता में तेजसिंह जोधा जैड़ा लोग जबरौ कांम करै हा। वठैई राजस्थानी कहाणी आपणी परम्परा में मंथर गति सूं चालै ही, तौ तीजै पासै केई जणां शोध में ई लागेड़ा हा। शोध, अनुसंधान री ‘मरुभारती’, ‘वरदा’, ‘विश्वभंरा’ आद उच्च स्तरीय पत्रिकावां निसरती। आज देखां तद लागै के कित्ता मेहनती हा वै मिनख। श्री अगरचंद नाहटा, कन्हैयालाल सहल नै आदर समेत चेतै करां, बित्ताई कम है।


आपरी बात करां, रचाव छपाव कांनी कियां बध्यौ?
सन् 1978 में पैली रचना भांत कहाणी ‘बान री डळी’ मूलचंद प्रांणेश रै संपादन में छपणवाळी ‘वैचारिकी’ पत्रिका में छपी। ‘जलतेदीप’ छापै में ई राजस्थानी रौ पानौ हौ, वठैई छप्यौ। अकादमी री पत्रिका ‘जागती जोत’ में ई रचना आवती। आकाशवाणी सूं ई लगाव हुयग्यौ। आगै चालनै ‘सवाल’, ‘चितार’ कविता संग्रै अर ‘आंगणै बिचाळै भींता’, ‘किस्तूरी मिरग’ कहाणी संग्रै आयां। ‘इंदरधनख’ निबंध संग्रै ई है राजस्थानी में। ‘कलिकथा वाया बायपास’, ‘म्हारौ दागिस्तान’, ‘सुपना मोरपांखी’ अनुवाद री साख भरती रचनावां छपी। ‘आखर’, ‘रचाव’, ‘निजराणो’ संपादित पोथ्यां है। सगळै रचाव साथै राजस्थानी सारू कीं कमीटमेंट हौ। इण भासा री साख कियां सवाई हुवै। आ बात म्हारै काळजै में ही अर इयां कैवूं के आज ई इण बात साथै की लिखूं, जीवूं। 
संपादन री जोत पेटै ई आपरौ जिकर करीजै?
सन् 1989 में अकादमी री पत्रिका ‘जागती जोत’ रा केई अंक संपादित करण रौ मौकौ मिल्यौ। वीं बगत म्हारै कन्नै कीं अकादमिक योग्यता ई नीं ही। दसवीं-बारहवीं हौ। चालतै बगत में लोगां खिल्ली ई उडायी। संजोग हौ के म्हैं मिणत करी अर लोगां नै पछै मजबूर हुयनै बडम करणी पड़ी। लगौलग हूंस नै इणरौ जस जावै।
‘कथाराज’ ई संपादित करी ही नीं आप?
हिन्दी में कहाणी राजस्थानी सूं पैली लिखण लागग्यौ हौ। इतवारी पत्रिका, मधुमती में छपतौ। म्हारौ हिन्दी में पठन ई बेसी हौ। ‘कथाराज’ हिन्दी री मासिक कथा पत्रिका ही। सालेक चाली। अेक खेत बेचण सूं आयेड़ी कन्नै जकी दमड़ी ही वा निमड़ग्यी अर ‘कथाराज’ ई बंद हुयग्यी।
आप कथा री बात बरियां-बरियां करौ, तद के आपरी पैली पोथी कविता री आवै?
साची बात है। राजस्थानी कविता पोथी ‘सवाल’ 1982 में छपी। वीं सूं पैलां राजिया रै दूहा रौ संपादन ई करîौ। पैलै अर दूजै कहाणी संग्रै बिचाळै ई खासौ लाम्बौ बगत है। खुद रै लिखेड़ै नै छपावण रै मामलै में आळसी हूं। दूजां रै पेटै उच्छाह जरूर है। म्हारौ ध्येय रैवै के राजस्थानी में चोखी चीज कियां आवै। म्हैं इणी पेटै केई भांत रा प्रयोग करण री चेस्टा करी। म्हैं कविता, कहाणी, निबंध आद सगळी विधावां में लिख्यौ। अेक-आध नाटक ई लिख्या। पण विधा गत बात करूं तद कहाणी सै सूं चोखी लागै। 
हां, बिचाळै ई बतावूं के म्हारै साथै सै सूं बडी बात आ रैयी- म्हानै लेखक मींत जबरा मिल्या। वां साथै सकारात्मक बंतळ रैयी। सगळी बातां बिचाळै म्हैं मानूं के ऊरमा हुवै, पण वींनै बरतनै लिखीजै तद बात बणै। वीं लिखाव सारू चोखी पत्रिका जरूरी हुवै। संचार, संचेतना रौ प्रसार जरूरी हुवै। राजस्थानी रौ दुरभाग के पत्रिकावां री कमी। कीं ही जकी ई सबल हाथां में नीं रैयी। च्यार-पांच ई संपादक चेतै आवै जकां कमींटमेंट साथै कांम करîौ। बीजां तौ कौतुहल साथै ई संपादन करîौ। 
अनुवाद छेतर रै कांम नै कियां देखौ?
मजबूरी बस कांम टोरîौ। संपादन करतौ तद दूजी भासा री जबरी रचना पढती बगत लागतौ के आ रचना आपणी भासा में ई आवणी चाहीजै। म्हैं पूरी खेचळ करी। अनुवाद कियां करीजै, केई आलेख लिख्या। करीजेड़ै अनुवाद में राजस्थानी री आपरी खुशबू हुवै। फगत गिणती बधावण सारू अनुवाद नीं हुवै। सीपी देवल रा अनुवाद जबरा है। वौ आदमी आपरी निजता ई नीं खोवै अर नीं आगलै री गमण देवै। म्हारी खुद री ई चेस्टा ई आ रैयी। आ ई रैवणी चाहीजै।

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