गांव खुद री भासा में ई कथीजै : पंवार

बंतळ-


राजस्थानी भासा रा नामी कथाकार अर चावा समाजसेवी श्री बैजनाथ पंवार हाल 90 बरस री औस्था में लगौलग रचाव री हूंस में हैं। पंवार री गिणत आधुनिक राजस्थानी कहाणी रै सरूवाती पांच-छह कहाणीकारां में करीजै। वांनै आलोचक किरण नाहटा राजस्थानी रा प्रेमचंद औपमा देयनै ई बडम्या। अठै पंवार जी सूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ दीरीजै।

रचाव री लांबी जातरा रै सरूवाती नखै कांनी कीं निजर पसारां तौ?
तौ म्हनै चेतै आवै गांव रतननगर अर सरदारशहर री पब्लिक लाइब्रेरी। अै दोनूं जिग्यां म्हारै सरूवाती रचाव री थळी रैयी। रतननगर में चाकी भेरती म्हारी मां री गीत राग काळजै में बैठती अर नाड़ रा टैरका सागै लागता। कठै-कठैई सुर रौ बासौ अर सबदां रौ सागीपौ सरू हुयौ हौ म्हारै में अठै सूं। पछै सरदारशहर पब्लिक लाइब्रेरी में पगफेरौ हुयौ तौ वठै मौजूद सगळौ साहित्य चाट लीन्हौ। साहित्य संस्कार अठै रा मान सकौ।
चटाव में सो-कीं तौ हुया कोनीं करै, कांई रुचतौ आपनै?
म्हनै कथा में बेसी रस आवतौ। प्रेमचंद तौ आज ई काळजै रमै। गांव रा दरसाव जका प्रेमचंद सिरजा, वै म्हनै इयां लागता कै उप्र रै गांवां री नीं हुयनै म्हारलै गावां रा है। पण जद संवाद देखतौ तौ भासाई अखबाई लागती। सोच जामतौ के जे औ पात्र राजस्थानी में बोलतौ तौ सागी बात आवती। जद आगै चालनै कथा म्हारी कोरणी सूं कोरीजण लागगी तद तौ बात रौ सुवाद ई आवण लागग्यौ। देखेड़ा-भोगेड़ा अर चितारीजेड़ा दरसाव इयां परगटीजता जांणै सैमूंडै खड़îा है। अठैई लाग्यौ के साचलौ गांव खुद री भासा में ई कथीज सकै।
भावां माथै भासा बंधण नीं हुया करै, सुणी तौ आ ही?
भावां रौ जबरौ बहाव जद मिनख मांय बैवै, तद वौ कलम के कूंची पकड़नै वीं बहाव नै ठांयचैसिर लगावै। वीं बगत सै सूं पैलां जकौ हथियार पकड़ीजै वीं में रचाव जामै। जियां कलम पकड़ीजगी तौ लेखक अर कूंची पकड़ीजगी तौ चित्रकार। आ ई सागी बात भासा रै मामलै में हुवै। जकी भासा लिखारौ अंगेज लेवै वीं भासा में भाव बैवता बगै। पण ओपरी अर पराई भासा में कदै-कदै भाव बापड़ा बण जावै। बात सागी चांकै नीं कथीजै। समझीज जरूर सकै, पण वा सागी संवेदना पाठक रै हीयै तांणी नीं पूगै, जकी रै पांण लिखारै रा भाव उमट्या। औ जस तौ मातभासा इयां के मायड़भासा नै बरत्यां ई मिल सकै।
रचाव री थे आखड़ी लीन्ही तौ रचाव कथा विधा में ई क्यूं?
म्हैं रचाव नै प्रण भांत कदै ई नीं लीन्हौ। इयां के रचाव री आखड़ी नीं है म्हारी। म्हैं सुभावू भांत रचाव करîौ। जियां कैयौ के किणी घटना-दरसाव नै लेयनै मन में घरळमरळ माचै अर भावां रौ उबाळौ आवै तद कागद साम्हीं आयनै खड़îा हुय जावै अर कैवै के म्हारै माथै भावां नै आसरौ देवौ।  म्हैं तद रचाव कांनी बधूं। म्हारौ लगैटगै रचाव इणी भांत हुयौ है। अेक कहाणी आज लिखी तौ आगली दो बरस पछै। मतलब दिनूदिन लिखाव अर कीं लिखणौ ई है- आ आखड़ी नीं ही। कदै-कदै तौ पांच-सात दिन रचाव लगौलग ई हुवतौ अर कदै महीनां में ई अेक रचना नीं लिखीजती। रैयी बात कथा-कहाणी री तौ म्हारौ मन कथा में रस मैसूसौ अर कथा लिखीजी तद पाठक री जकी कथीजती पढगत साम्हीं आई तद म्हैं फैसलौ करîौ के कहाणी रौ बख थन्नै ठीक आवै। लकब सूं जे कोई अेक विधा कबूलीजै तौ दोख ई कांई? कविता केई मांडी पण वांनै म्हैं उल्लेखजोग नीं समझूं।
राजस्थानी कहाणी मांडती बगत कांई थे सोच्यौ के कदै आपरौ रचाव राजस्थानी साहित्य इतियास में दाखलौ बणसी?
आ स्यात् ई कोई लिखारौ लिखती बगत सोचतौ हुयसी के वींरौ लिखाव दाखलौ बणसी। हां, इत्तौ जरूर है के वीं बगत राजस्थानी भासा में लिखती वळा रावत सारस्वत री दीरीजेड़ी हूंस के थूं इतियास सिरजसी, राजस्थानी में लिख- आज ई चेतै आवै। वां ई म्हनै राजस्थानी कांनी मोड़îौ। वां दिनां म्हारै सागै श्रीलाल नथमल जोशी, नानूराम संस्कर्ता, यादवेंद्र चंद्र, दीनदयाल ओझा आद केई नांव ई कथा आंगणै रमता। वांरै भेळै म्हैं रम्यौ, आ म्हारै सारू गीरबै री बात है।
मास्टर री जूंण जीयनै थे आखर नै चोखी भांत जीयौ। आखर री मैमा रा गीत गावां तौ?
आखर कुदरत है। आखर जूंण री जिगड़ी है। आखर चांनणौ है। इण चांनणै नै म्हैं लालेटेण लेयनै प्रौढ-शिक्षा केंद्रां में बेसी करणै री आफळ करी। स्कूलां खुलवाई। भवन बणवाया। सेठ-साहूकारां कन्नै सूं गरीब-गुरबां रै टाबरां नै इमदाद करवाई। अर इयां कैवूं के पैलीपांत में प्रौढ-शिक्षा रै पढेसरियां सारू पोथी ‘अकल बिना ऊंट ऊभाणो’ रौ रचाव कीन्हौ।
कहाणी पोथ्यां री बात करां तौ?
‘लाडेसर’, ‘नैणां खूट्यौ नीर’, ‘ओळखांण’ कथा-जातरा रा पांवडा है। केई इणांरै आसैपासै सिरजीजी, जियां- ‘जीवता जागता चितराम’, ‘गदीड़’, ‘कोल रौ मोल’, ‘चिंतण रै चिलकारै।’
मान-सनमांन ई खूब मिल्या?
किणी ई छेतर में कांम करै अर मान मिलै, तद वौ हूंस नै सवाई करै। म्हारौ बड़भाग रैयौ के काम सूं बेसी मान मिल्यौ। हाथ री लकीरां मांय जस है। कदै-कदै तौ काम कोई और करै अर जस म्हानै मिलै। भगवान री म्हैर है। बस अब तौ राजस्थानी भासा नै संविधान री आठवीं अनुसूची में जोड़ीज जावै तौ सै सूं बडौ मान हुय जावै। औस्था रै इण परवांण आ ई आस बची है।
संदेस?
खूब पढौ। खूब लिखौ। जस कमावौ। नवा लिखारा जोड़ता चालौ। भासा नै मान दीरावौ।

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