लिखतां पांण छपण सारू लेय भाजणौ कुबांण हुवै: कागद

बंतळ-


राजस्थानी भासा रा नामी कवि ओम पुरोहित कागद री साख आ है के वै लगौलग लिखै। सगळै मंचां माथै मजबूती सूं ऊभा रैवै अर जबरी भांत राजस्थानी भासा रौ पख राखै। वांसूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ अठै दीरीजै।

थे कविता री आखड़ी कद लीन्ही?
कविता म्हारै घर-आंगणैं में हरमेस ई रैयी। म्हारै जल्म सूं पैली ई म्हारै घर में कविता ही। म्हारा पिताजी कविता बांचता-बोलता अर सुणावता। राजस्थानी लोक साहित्य पिताजी रै कंठां हौ । ढोला मारू रा दूहा, वीर सतसई अर  मीरा, कबीर, बिहारी, तुलसी, अमीर खुसरो, चन्द्र वरदाई भूषण आद री अलेखूं किताबां घर में ही। पिताजी अै किताबां बांचता अर कन्नै बैठायनै सुणावता। अलेखूं चारण कवियां री सैंकडूं कवितावां पिताजी रै कंठां ही। घर में कवितावां सुणतां-सुणतां ई स्कूल गयो। बात सन 1970-71 री है छठी जमात में पूग्यौ तौ स्कूल ही श्री गंगानगर जिलै रै श्री करणपुर कस्बै री ज्ञान ज्योति उच्च माध्यमिक विद्यालय अर प्रिंसिपल हा हिन्दी अर राजस्थानी रा चावा-ठावा कवि-कथाकर श्री जनकराज पारीक। पारीक जी मीठै गळै रा धणी। स्कूल रै कार्यक्रमां गीत-कविता सुणावता तौ रळी आवती । वां ई दिनां में ठाह नीं कद म्हैं ई कविता लिखण लागग्यौ। उणीं दिनां ई श्री जनकराज पारीक म्हारी अर म्हारी कविता लिखण री हूंस री सम्भाळ करी तौ म्हारी कविता चीलां चढण लागगी।

 आप जद कविता लिखणौ सरू करयौ तद कविता नै किण भांत देखता?
कविता जद लिखणीं सरू करी ही तद तौ बस फगत कीं लिखण रौ ई कोड हौ । गुरुजी री भांत गावण रौ ई कोड लाग्यौ पण कदैई गाइज्यो कोनीं। उण दिनां कविता में चोखी-चोखी सीख परोटण अर बडा बूढां सूं वाहवाही लूटण री चावना रैवती। अेक साल तांईं तौ म्हारी कविता में कोरौ आदर्शवाद ई पळकतौ। अेक साल पछै म्हारी कविता में व्यंग्य आवण लागग्यौ। उणी दिनां कुचरणी, अमूंझणी अर फरक नांव सूं छोटी-छोटी व्यंग्य कवितावां राजस्थानी भासा में लिखणीं सरू करी। हास्य-व्यंग्य री अै कवितावां सन 1975-76 में जायनै तौ भोत चर्चित हुयगी। आं कवितावां रै तांण ई वां दिनां ‘डांखळा’ विधा रा धणी अर राजस्थानी रा चावा-ठावा कवि श्री मोहन आलोक सूं भेंटा हुया। अठै सूं म्हारी अर म्हारी कविता री दिसा अर दसा ई बदळगी। आं च्यार-पांच सालां में ई म्हनै कविता म्हारी आत्मा सूं भोत ऊंची लागण लागगी। कविता पेटै म्हारी समझ रै वां सरुआती दिनां में म्हनै लागतौ के कविता अणबोल जीवां अर दब्योडै-दुखी मानखै री जबान है ।
अर आज?
आज ई कविता पेटै म्हारी समझ में कीं घणौ बदळाव नीं आयौ। म्हैं आज ई कविता नै निबळी पड़ती मिनखाजूण री सोरप सारू सबदां री आफळ मानूं। कविता सै सूं पैली तौ आपरी संवेदन दीठ अर सबदां रै तांण आदमी नै आदमी बणावण री हूंस पाळै। मांदा पड़तै मिनखा-मोल री रिछपाळ करण सारू तजबीज करै। आज कविता जड़ अर चेतन में घणौ फरक नीं करै क्यूंकै आज अै दोनूं ई मिझळा मिनखां रै हाथां कूटीजै। म्हनै लागै के आज रै इण आपाधापी अर अपसंस्कृति रै जुग में मिनखपणै साथै कोई नीं है। कविता ई अेक अैड़ौ हथियार है जिकौ इण पीढी रौ आगीवांण बण सकै।
कविता लिखण रौ आंटौ कांई है?
कविता अंतस री वाणी है। अंतस सूं निकळण वाळी इण वाणी रै निकळण रा पछै आंटा कांईं? कविता सुण्यां, बांच्यां  अर बोल्यां जे सुख अर तृप्ति मिलै तौ इणनै लिखण रौ आंटौ कुण अर कोई क्यूं सोधै? सीधै-सीधै सबदां में कैवां तौ कविता मन रै भावां रौ परगटीकरण है। मन रा भाव व्यष्टि रूप भी हुय सकै अर समष्टि रूप ई। पण इण में संवेदना री पुट समष्टिपरक ईज हुवै। कविता रौ ताणौ-पेटौ इण संवेदना रै मारफत ई गूंथीजै। दीठ रौ पसराव समष्टि नै गोखै, संवेदित हुवै अर पछै उण रै हुवण माथै चींत करै। आ चींत पसरती-पसरती परगट हुवण नै आफळै। इणी आफळ में आ चींत आपरै भरोसै रै के पछै पखधर सबदां री पड़ताल करै अर अंवेरै। पछै अै सबद ई चींत री भट्टी में तप्योडै मन रै भावां नै जोगता बिम्ब अर प्रतीकां रै मारफत संवेदना नै कविता रूप परगटावै  कविता री बुणगट तौ भोत पछै जायनै तय हुवै। मन रा भाव जे गुण-गुणाइज रैया हुवै तौ कविता छंदा री सरण लेवै अर जे मन रा भाव दडाछंट भाजै तौ वा छंद मुगत हुवण री तजबीज करै ।
आपरी कविता नै पाठक जबरी मानै। अेक पाठक री हैसियत सूं आप किणरी कविता रा मुरीद हौ?
म्हारी कविता में आम आदमी री पीड़, अबखायां अर उणरौ आज हुवै। उण रै ओळै-दोळै रा बिम्ब अर अैनाण हुवै। म्हारी  कविता रौ गठाव सीधौ-सादौ अर सहज हुवै। म्हारी कविता में कलात्मकता री चतराई अर बणावटीपण जाबक नीं हुवै। इणीज कारण स्यात म्हारी कविता नै म्हारा पाठक पसन्द करै। म्हैं नागार्जुन, त्रिलोचन शास्त्री, केदारनाथसिंह, अशोक वाजपेयी, चन्द्रसिंह बिरकाळी, कन्हैयालाल सेठिया, नारायणसिंह भाटी, ताराप्रकाश जोशी , सत्यप्रकाश जोशी, पारस अरोडा, मोहन आलोक, जनकराज पारीक, तेज सिंह जोधा, औंकार पारीक, गोरधनसिंह शेखावत, मणिमधुकर, सांवर दइया, मंगत बादल, प्रेम जी प्रेम, रघुराज सिह हाड़ा, नन्द चतुर्वेदी, हरीश भादाणी, नन्द किशोर आचार्य, ऋतुराज, चन्द्र प्रकाश देवल  नन्द भारद्वाज आद री कविता रौ मुरीद हूं। म्हारा खास चावा कवि जनकराज पारीक, मोहन आलोक, कन्हैया लाल सेठिया अर हरीश भादाणीं है। आप खास मुरीद री बात करौ तौ म्हैं जनकराज पारीक री कविता रौ बरसां सूं मुरीद हूं।
कांई खासियत है इण कवि री कविता में?
म्हारा चावा कवि जनकराज पारीक री कवितावां में आम आदमी री पीड़, अबखायां अर चिंतावां है। आं री कवितावां में साफगोई, कैवण री नरमाई, सांवठौ बिम्ब विधान अर भासा री भोळप है।  आं री कविता बांच्यां इयां लागै के आ कोई म्हारै ओळै-दोळै री ई बात है। पारीक जी री कविता में गांव-ढाणी रा जीवता-जागता चितराम आपबीती-सी दिखावता लागै ।
लोक सारू कविता अर लाइब्रेरी सारू कविता। औ ई कांई भेद देखौ आप?
जीव रै बोल्यां सबद परगट हुया। आं सबदां ई पछै जीव री मनगत नै परगटाई। जीव ई मनगत नै लोक में सुणाई अर गाई तौ स्यात कविता उणी में जाई-पळी अर पसरी। इण सारू कविता अर लोक रौ जुगां पुराणौ नातौ है। कविता स्यात लोक सूं ई आपरौ रूप धारण करयो है। कविता पोथ्यां में भेळी कर सजावण सारू नीं अपूठी बांचण अर लोक नै पूगावण री चीज है। आज घणकरी-सी कवितावां पोथ्यां में भेळीज-भेळीजै। इयां के लाइब्रेरियां में खरीदीज रैयी है अर धरीज रैयी है। उणां नै कोई बांचणियौ ई नीं मिलै। इणरौ कारण वै कवितावां फगत लाइब्रेरी सारू ईज है। लोक री कविता तौ लोक में ई भंवै, लाइब्रेरी में नीं जावै  फगत जूनौ साहित्य ई लोक साहित्य नीं बजै। आज जिकौ लोक रुचि रौ, लोक हित रौ अर लोक रौ चितराम कोरतौ साहित्य लिखीजै वौ ई लोक साहित्य ई है। इस्यौ साहित्य कित्तौक है- आप जाणौ ई हौ। इण सूं पड़तख है कै लोक सारू कविता अर लाइब्रेरी सारू कवितावां, दो भेद साव-साफ भेद है।
अबार तांणी राजस्थानी रचाव?
म्हैं हिन्दी, पंजाबी अर राजस्थानी भासा में लिख्यौ है, पण म्हारौ घणकरौ लेखन राजस्थानी भासा में ई है। राजस्थानी भासा में सात कविता संग्रै छप्या है अर तीन त्यार पड़्या है छपण सारू। पैलो राजस्थानी कविता संग्रै ‘अंतस री बळत’ पछै ‘कुचरणी’, ‘सबद गळगळा’, ‘बात तो ही’, ‘कुचरण्यां’, ‘पंचलड़ी’ अर छेकड़लौ कविता संग्रै ‘आंख भर चितराम’। अजै ई ‘मायड़ भाषा राजस्थानी’ सिरै नांव सूं भाषा-विमर्श री किताब आई है जिकी खूब चावी हुई है।
इनाम इकराम?
म्हारी निजर में कविता रौ इनाम उणरौ पढीजणौ ई है। घणी निजू संस्थावां पुरस्कार बांटै। अकादमी ई औ कांम करै। पण म्हैं कदैई पुरस्कारां वाळी गळी में गयौ ई कोनीं। किणी ई निजू संस्था में पुरस्कार सारू किताब नीं भेजी अर नीं कोई कदैई इण सारू अरजी ई लगाई। हां पण म्हनै म्हारी किताब ‘बात तो ही’ माथै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रौ ‘गणेशी लाल व्यास उस्ताद पुरस्कार’, हिन्दी पुस्तकालय, छोटी खाटू रौ ‘महाकवि कन्हैयालाल सेठिया मायड़ भाषा राष्ट्रीय पुरस्कार’, भारतीय साहित्य एवं कला परिषद, भादरा रौ ‘कवि गोपीकृष्ण दादा राजस्थानी काव्य पुरस्कार’, जिला प्रशासन, नगर परिषद अर दूजी केई संस्थावां सूं केई पुरस्कार मिल्या है ।
जोध जवान लिखारा री राजस्थानी में गत?
अेक बगत हौ जद नीं तौ घणां छापाखाना हा अर नीं प्रकाशक हा, नीं अकादमी ही। पण लिखणियां भोत लिखता। छपतौ पण माड़ौ ई हौ। इणीज कारण आज संग्रहालयां में दो लाख सूं बेसी पांडुलिपियां अणछपी पड़ी है। इत्ती ई पांडुलिपियां गुमनाम लेखकां रै घरां गुमनामी में पड़ी है। घणां ई नामी-गिरामी लिखारां री मौत हुयां पछै उणांरै घरां अणछपी पोथ्यां संदूकां में बन्द पड़ी है। पण इण बिचाळै आज राजस्थानी भासा रा नवा लिखारां रौ भविख सांतरौ दीखै। इणरौ कारण आज छापाखानां री भरमार, प्रकाशकां री लैण, अकादमी री पांडुलिपि सहायता अर पत्र-पत्रिकावां री भीड़ ह,ै जठै वांरी रचनावां री तजबीज बैठ रैयी है। अब तौ मायड़ भासा राजस्थानी रै संविधान री आठवीं अनुसूची में भेळीजण री ई आस बधी है। जोध जवान राजस्थानी  लिखारा री गत विगत सूं सांतरी लखावै।
वां सारू कोई संदेस?
नवा लिखारा सूं म्हारी अरज है कै वै आपरी जड़ां नीं छोडै। आपरी जड़ां सूं हेत अर प्रीत राखौ- अै जड़ां ई आपनै साहित्य रौ अेक लूंठौ रूंख बणायसी। आपरा पुरोधा साहित्यकारां रौ साहित्य बार-बार बांचै अर खुद रै लिख्योड़ै  नै बार-बार टांचै। लिख्यौ अर छपण सारू लेय भाजौ री बांण नीं घालौ। आ बांण अपघाती है। बडेरा साहित्यकारां री संगत करौ। औ सत्संग आपरै लेखन में सवायौ निखार ल्यावण में मदद करसी। आपरी रचना रौ अणूंतौ लाड मत ना करौ। आपरी रचना साथै उण समझदार बाप दांई ब्यौवार करौ, जिकौ आपरै टाबर नै ऊंधै गेलै जावण सूं थामै। आप खुद री रचना सारू जित्ता निरमम हुयसौ, वा बित्ती ई सावळ ढांण घलसी।

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