भीखै रा दिन भोगनै आगै बध्यौ : नंद भारद्वाज

बंतळ-


राजस्थानी भासा रा लिखारा श्याम गोइन्का प्रवासी रचनाकार हैं। वै चूरू भौम रा सपूत है अर अबार बैंगलूरू रैवै। आप कमला गोइन्का फाउण्डेशन रा मुख्य ट्रस्टी हैं। श्री श्याम गोइन्का सूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ अठै दीरीजै।


ठेठ धोरां धरती सूंआपरौ लगाव रैयौ। साहित्य रैआंगणैकियांआय उभा हुया? संखेप में विगत।
आ बात साची है के म्घ्हारौ जलम आथूणै राजस्घ्थान रै रेतीलै धोरां बिच्घ्चै अेक गुमनाम-से गांव में हुयौ, जठै नीं कोई स्घ्कूल-दवाखानौ, नीं डाकखानौ, नीं सघ्क-बीजळी री तौ बात ई कांई, पाणी तकात चार-पांच मील अळगै सूं उूंट माथै पखाल भर नै लायां पार पघ्तौ। नीं कोई आवागमन रौ साधन हौ अर नीं देस-दुनिया बाबत कीं जांणण रौ कोई जरियौ। जद म्घ्हैं पांच बरस री औस्घ्था में पूग्घ्यौ तौ गांव सूं अधकोस अळगी पाघेस रै कस्घ्बै में एक स्घ्कूल जरूर खुलगी ही, जठै म्घ्हारै गांव रा दो अेक टाबर जावणा सरू हुया हा, म्घ्हैं ई असकेल में वांरै साथै जावणौ सरू कर दियौ - कीं पिताजी रौ स्घ्सारौ अर हूंस रही के म्घ्हैं कीं आंक सीख लेवूं तौ वांनै ई आपरी पिंडताई (टीपणौ अर कथा बांचण) में कीं स्घ्सारौ लाग सकै।
आंक सीखण कांनी आ सरूवात ही। इणगत तौ समूचा आंक सीखण तांणी खासा आफळ हुयी हुयसी?
आफळ तौ घणी करणी पघ्ी, पण कीं बाळपणै री जिद अर कीं संजोग रौ साथ बण्घ्यौ रह्यौ। एकर स्घ्कूल पकघ्ीजगी तो इस्घ्सी जरू पकघ्ी के फेर तौ छुडावण री घणी कोसीस करियां ई कोई रै ताबै नीं आई अर संजोग सूं मास्घ्टर लज्घ्जाराम जी सरीखा कीं अैघ शिक्षक ई मिळ्या जिकां पढाई रौ जीवण में कांई मोल हुवै, वौ हीयै में आछी तरै बैठाय दियौ। असल में म्घ्हारा पिताजी आपरै हलकै में आछा गुणी आदमी मानीजता, वां म्घ्हनै घर में रामायण, महाभारत, पुराण, ,पंचांग अर ग्घ्यान-ध्घ्यान री इत्घ्ती बातां म्घ्हारी 
प्राथमिक शिक्षा रै सैंजोघ्ै सिखा-समझाय दीवी के साहित्घ्य सारू गाढौ लगाव स्घ्यात उणी समचै म्घ्हारै सभाव अर संवेदणा रै आंगै उतरग्घ्यौ। 
आपनै इण लगाव रौ कद ठाह लाग्यौ?
जद म्घ्हैं आठवै दरजै तांई री भणाई पूरी कर ली, तौ म्घ्हनै गांव सूं आठ कोस अळगै बाघ्मेर सैर में हाई स्घ्कूल में दाखलौ लेवणौ पड़्यौ। वठै संस्घ्कृत अर हिन्घ्दी पढावण वाळा आछा शिक्षक मिळ्या, जिकां म्घ्हारै कंवळै मन में उण लारली विरासत सूं गाढौ लगाव पैदा कियौ। जद तीन बरस पछै संजोग सूं उठै ई कॉलेज खुलग्घ्यौ तौ म्घ्हारी भणाई पण जारी रही। कॉलेज में हिन्घ्दी रा नांमी विद्वान डॉ शान्तिगोपाल पुरोहित मिळग्घ्या, जिकां हिन्घ्दी कविता अर साहित्घ्य सूं आछौ हेत जगायौ। स्घ्कूल अर कॉलेज में सांस्घ्कृतिक कार्यक्रमां में म्घ्हारी आछी भागीदारी रैवती अर उणरी खास वजै साहित्घ्य सूं लगाव ई रही व्घ्हैला। जद म्घ्हनै कॉलेज में किणी कविता पाठ रै कार्यक्रम में भाग लेवण रौ मौकौ आवतौ तौ कोसीस रैवती के म्घ्हैं म्घ्हारी खुद री रच्घ्योडी कोई कविता के गीत सुणाउं अर इण भांत बी ए पास करण तांई कॉलेज में केई वार म्घ्हारी खुद री कविता ई सुणावण री हूंस राखी। स्घ्यात इणी समचै साहित्घ्य म्घ्हारै सभाव अर जीवण-शैली रौ अंग बणग्घ्यौ।
आप कांई लगैटगै हरेक रचनाकार कविता री मारफत रचाव कांनी आवै। आप कवि रूप में ई जस कमायौ अर गद्यकार रूप में ई। आ कियां?
बाकी साहित्घ्य सूं गाढौ अर संजीदा लगाव तौ एम ए री पढाई खातर जयपुर आयां ई पूरसल बण्घ्यौ। अठैराजस्घ्थान वि वि में वां दिनां जिका लोग हा, वै खुद साहित्घ्य में आपरी आछी पिछांण राखण वाळा लोग हा - डॉ सत्घ्येन्घ्द्र, डॉ विश्घ्वंभरनाथ उपाध्घ्याय, हीरालाल माहेश्घ्वरी, शंभूसिंह मनोहर, नरेन्घ्द्र जी भानावत, जिकां म्घ्हनै राजस्घ्थानी साहित्घ्य सूं गाढौ परिचै करायौ, जिणरी अेक वजै आ ही के एम ए में डिंगळ म्घ्हारौ स्घ्पेसल विषय हौ। राजस्घ्थानी अर हिन्घ्दी में गीत-कवितावां लिखणी बी ए पास करतां सरू व्घ्हेगी ही, अर एम ए रै दरम्घ्यांन जद पंत-प्रसाद-निराला रै साथै राजस्घ्थानी रा नांमी कवियां नै पढण रौ मौकौ मिळियौ तो कविता रै बहुआयामी विस्घ्तार सूं म्घ्हारी ओळख बधी। अर कविता ई कांई साहित्घ्य री दूजी विधावां सूं गैरी पिछांण बणी, उण विरासत नै भणाई पेटै तौ जांणी समझी ई, खुद वां विधावां में रुचि बधी के म्घ्हैं खुद कांनी सूं कीं नवौ जोघ् सकूं, गद्य माथै अधिकार करणौ म्घ्हनै आपणी कथणी नै गाढी अर पुख्घ्ता बणावण सारू सदा सूं ई जरूरी लागतौ रह्यौ। इण वास्घ्तै एम ए री पढाई रै दरम्घ्यान ई समीक्षा विधा माथै आछी पकड बणण लागी ही। अखबारां में जरूरी रिपोर्टिंग करण रा केई मौका अठै मिळता, खुद अखबारां में कविता, कहाणी, टीप इत्घ्याद छपण लागगी।
 वां दिनां जयपुर पत्रकारिता री दीठ सूं आछौ मुकाम मानीजतौ जठै राष्घ्ट्रदूत, राजस्घ्थान पत्रिका,नवज्घ्योति सरीखा अखबार छपता अर म्घ्हैं आं अखबारां में बरोबर छपतौ रह्यौ। एम ए पूरी करियां पछै आकाशवाणी रा कार्यक्रमां में कंपीयर रै रूप में भाग लेवतौ, तीन-च्घ्यार महीणां अेक अखबार री डैस्घ्क माथै काम कियौ, वां दिनां अठै सूं रावत सारस्घ्वत जी श्मरूवांणीश् पत्रिका छाप्घ्या करता, वां म्घ्हारी केई राजस्घ्थानी कवितावां अर कहाणी छापी। आपरै आयोजनां में कोड सूं बुलावता। घंटां साथै बैठाय राजस्घ्थानी रै नवै-जूनै लेखण सूं पिछांण बधाई।
वीं बगत साहित्य छेतर रा दरसाव आज ई आपरै चेतै आवै। अजै चालतै जुग कांनी देखौ तद के फरक?
एम ए करण रै दरम्घ्यान ई राजस्घ्थानी भासा अर साहित्घ्य बाबत जिकी चेतणा जागी अर लाग्घ्यौ के म्घ्हनै म्घ्हारी खुद री भासा में आछौ काम करणौ चाहीजै, उणी समघ्झ सूं म्घ्हारौ गाढौ रुझांण इण भासा अर साहित्घ्य सूं बध्घ्यौ। संजोग सूं एम ए में तेजसिंह जोधा म्घ्हारा गाढा मित्र अर हेताळू रह्या। म्घ्हे दोनूं अेक ई कमरै में साथै रैवता अर घंटां तांई कविता अर साहित्घ्य माथै आपसरी में बहस-संवाद करता। तेजसिंह वांई दिनां राजस्घ्थानी में एक काव्घ्य-पोथी रची ही - ओळूं री ओळ्यां, उण कविता नै लेय आछी बंतळ व्घ्हेती, फेर वां एक लांबी कविता पौळाईघ् श्कठै ई कीं व्घ्हेगौ हैश् अर साथै ई ‘राजस्घ्थानी-अेक’ सरीखी पत्रिका छापण री योजना बणाई। वांई दिनां म्घ्हारी राजस्घ्थानी कवितावां ई श्मरुवांणी अर ‘हरावळ’ में छपणी सूर व्घ्ही, हिन्घ्दी में ई कवितांवां बरोबर छपती रही अर साहित्घ्य म्घ्हारै सारू कोई फुरसत रै बगत रौ काम नीं रह्यौ - रात दिन उणी जुनून में रैवणौ रास आवतौ।  सन् 1972 में म्घ्हैं जयपुर सूं जोधपुर आयग्घ्यौ दृ ‘जलतेदीप’ अखबार में उपसंपादक रे रूप में अर अठै आवतां ई जोधपुर विश्घ्वविद्यालय में डॉ नामवरसिंह री देखरेख में पीएचडी करण रौ निस्घ्चै धारण कर लियौ। विसय हौ दृ ‘मुक्तिबोध की रचना प्रक्रियाश् इण विषय माथै जद काम करणौ सरू कियौ तौ लाग्घ्यौ के साहित्घ्य रौ औ दरियाब कित्घ्तौ उूंडौ अर कित्घ्तौ अथाग है। खूब जम नै अध्घ्ययन करण री जरूत लखावती, जित्घ्तौ पढतौ कमती पघ्तौ अर औरूं जांणण री भूख जागती। पछै नामवरजी सरीखै विदवान नै आपरै काम सूं रंजावणौ सहल नीं हौ, पीएचडी पूरी हुई व्घ्हौ के नीं, साहित्घ्य सूं जुघव जरूर पुख्घ्ता व्घ्हैग्घ्यौ अर खूब काम करण री हूंस जागी, जिकी आज तांई जारी है। 1972 रै आखरी में म्घ्हनै राजस्घ्थानी रा कवि सत्घ्यप्रकाश जी जोशी श्हरावळश् रौ काम देखण सारू मुंबई बुलाय लियौ, कोई दो महीनां तांई म्घ्हैं मुंबई रह्यौ, हरावळ रौ अेक विशेषांक वठै पूरौ कर म्घ्हैं जोशीजी री सलाह सूं श्हरावळश् पत्रिका नै जोधपुर ले आयौ अर अठै 1975 तांई इण पत्रिका रै जरियै राजस्घ्थानी रा नवा लिखारां सूं आछी तालमेल बणाई, वांनै पत्रिका सूं जोघ््या अर गाढै हेत सूं भासा सारू कीं काम करण रौ अवसर मिळयौ। वांई दिनां राजस्घ्थानी रा नवा अर चावा लिखारां सूं सीधौ संपर्क बण्घ्यौ, खुद वां माथै आलोचना लिखी, वै पत्रिका में तौ छपी, वांरौ अेक संग्रह श्दौर अर दायरौश् रूप में सांम्घ्ही आयौ। ‘अंधार-पख’ सरीखी कविता पोथी 1974 में पैली आ चुकी ही। इण भांत अक्घ्टूबर 1975 तांई राजस्घ्थानी अर हिन्घ्दी में एक नवै लेखक रै रूप में जित्घ्तौ काम करण रौ मौकौ मिळ्यौ, अर जिकी रफ्घ्तार बणी वा 1975 में आकाशवाणी री नौकरी में आयां अेकर कीं धीमी अवस पड़गी, पण साहित्घ्य सूं लगाव कदेई कमती नीं हुयौ। 
आकाशवाणी रौ मारग ई तौ एक भांत सिरजण सूं जुड़ेड़ौ हुवै। वठै ई खासा तजरबा हुया हुयसी?
आकाशवाणी सूं जुघ्यां साहित्घ्य सारू काम करण रौ अेक नुंवौ माध्घ्यम तौ हाथ आयौ अर आपरै हलकै (जोधपुर) में ई पैली पोस्टिंग मिळी तौ हलकै रा लोगां नै इण माध्घ्यम सूं जोडण रा आछा अवसर ई मिळ्या, खासकर लोकसंगीत अर साहित्घ्य री विधावां में काम करणवाळां नै इण माध्घ्यम सूं जोडण री पूरी कोसीस रही। पण इण माध्घ्यम री मोटी अबखाई आ पण लखाई के वठै जिकौ ई काम व्घ्है, वौ फगत वाणी सरूप में ई रैय जावै, साहित्घ्य में जिण भांत हरेक काम दस्घ्तावेज बण जाया करै अर संदर्भ सरूप आगै काम आवै, वा गुंजास अठै कमती रैवै, इण वास्घ्तै इण माध्घ्यम में जिकौ कांम हुयौ, उणरी आर्काइव्घ्ज वैल्घ्यू तौ जरूर है, अर जिका लोग उणरौ उपयोग करण री हूंस राखै, वै ई इणरौ महत्घ्व जांण सकै।  म्घ्हैं राजस्घ्थानी अर हिन्घ्दी री केई नामी साहित्यिक हस्तियां सूं जिका इंटरव्घ्यू इण माध्घ्यम परवांणै लिया, वै खुद में अेक मिसाल मानीजै। वां इंटरव्घ्यूज रौ एक संकलन श्संवाद निरन्घ्तरश् नांव सूं 1995 में छप्घ्यौ, जिणनै खूब पसंद करीजियौ, उणमें पदमश्री सीताराम लालस, लोक कलाविद कोमल कोठारी, कवी हरीश भादाणी अर भासा, साहित्घ्य अर संस्घ्कृति मे आछी पिछांण राखणवाळा विद्वानां रा साक्षात्घ्कार आप देख सकौ। म्घ्हैं इण मामलै में खुद नै भागवान मानू के म्घ्हनै आकाशवाणी अर दूरदर्शन री 33 बरसां री नौकरी में तकरीबन 21 बरस राजस्घ्थान रा न्घ्यारा न्घ्यारा सैरां में रैय नै काम करण रौ मौकौ मिळ्यौ अर म्घ्हारी पूरी कोसीस रही के राजस्घ्थानी जीवण, संस्घ्कृति अर साहित्घ्य सारू आं माध्घ्यमां रै जरियै कीं ओपतौ काम कर सकूं। औ काम हुयौ ई अर आज आकाशवाणी दूरदर्शन रै आर्काइव्घ्ज में अैडा कित्घ्ता ई संग्रहणीय कार्यक्रम आपने लाध सकै, जिका म्घ्हारी आफळ री कीं पिछांण आपनै जरूर देय सकै। म्घ्हनै आं माध्घ्यमां में काम करतां साहित्घ्य लेखण सारू सीमित बगत ई मिळ पावतौ, पण जद म्घ्हारी गौहाटी दूरदर्शन में दो बरस पोस्टिंग रही तौ वठै म्घ्हनै नैठाव सूं बगत मिळ्यौ अर म्घ्हैं श्सांम्घ्ही खुलतौ मारगश् सरीखौ पूणी दो सौ पेज रौ उपन्घ्यास राजस्घ्थानी में त्घ्यार कर सक्घ्यौ। यूं आं माध्घ्यमां में काम करण रै दरम्घ्यान हिन्घ्दी अर राजस्घ्थानी में म्घ्हैं बरोबर काम करतौ रह्यौ हूं, अर किताबां ई दोनूं भासावां में अगोलग छपती रही है।
इण जातरा बिचै आप राजस्थानी नै किण भांत देखौ?
राजस्घ्थानी म्घ्हारी जीवण जातरा रौ अणतूट हिस्घ्सौ रही, यूं म्घ्हारै काम रौ दायरौ अर माहौल इण भांत रौ रह्यौ के म्घ्हें किणी अेक भासा में बंध नै स्घ्यात ढंगसर काम नीं कर पावतौ, पण जद कद ई राजस्घ्थानी नै आपरौ माध्घ्यम बणाय नै काम करण रौ अवसर हाथ आावतौ, वठै अेक भावनात्घ्मक रिस्घ्तौ जरूर बणतौ अर जीव में थ्घ्यावस रैवती के आपरी भासा अर माटी सारू कीं करण रौ संजोग बण्घ्यौ । 
 राजस्घ्थानी भासा में आछौ साहित्घ्य-सिरजण हुवै, वौ राजस्घ्थानी लोकजीवण में आपरौ ओपतौ असर बणावै, वांरै काम री अणदेखी नीं हुवै अर आछौ काम करणवाळां रौ उछाव बण्घ्यौ रैवै, वांनै बधावौ मिळै के वै आपरै काम नै औरूं मैणत अर संजीदगी सूं करता रैवै, इण सारू आ बात घणौ महत्घ्व राखै के इण समरथ भासा नै संवैधानिक मान्घ्यता मिळै - आ बात राजस्घ्थानी में संजीदगी सूं लिखणवाळा साहित्घ्यकार आजादी मिळण रै बगत सूं कैवता आया हा, साहित्घ्य लेखण री अठै अेक अणतूट परंपरा रही, पण आपांरौ सगळां सूं मोटौ दुरभाग औ रह्यौ के इण भासा री मान्घ्यता रौ मसलौ राजनीत रा अळूझाघ् में इण भांत उळझा राख्घ्यौ है के इणरौ ओजूं तांई कोई छेघै-निवेघै नैघै नीं दीखै। अबै तौ राजस्घ्थानी सारू जनता में ई कीं जागरूकता आई है, भासा री मान्घ्यता सारू आन्घ्दोलन रा आसार ई केई दफै बणता दीखै, पण प्रदेस री जनता में जद तांई आ गाढी चेतना नीं बापरैला, भासा री मान्घ्यता रौ मसलौ म्घ्हनै कम ई सुळझतौ निगै आवै अर आ बात राजस्घ्थानी रा सगळा हेताळुवां वास्घ्तै गैरी चिन्घ्ता रौ कारण है।
राजस्थानी में समकालीन लेखन पेटै? जवान लिखारां सारू कोई दीठ?
साहित्घ्य-कर्म जठै मिनख में आछी मानवीय संवेदणा जगावै, खुद रचनाकार नै ई आछा संस्घ्कर देवै अर उणरी समाज में अेक पिछांण बणावै, साथै ई म्घ्हनै आ बात पण महताउू लागै के औ गाढी समाजू जिम्घ्मेदारी सूं जुघ्यिोघै काम व्घ्है, इण वास्घ्तै हरेक लेखक नै जस-अर्थ-काम-मोक्ष री सनातन भावना सूं उूपर उठ नै आपरै इण मानवीय अर कळा-धरमी काम नै कीं बधीक मांण देवणौ चाहीजै। नवा लेखक जे इण मूळ बात नै आपरै चित्घ्त अर सभाव रै आंगै उतार सकै, तौ निस्घ्चै ई राजस्घ्थानी में नवै लेखण सूं समाज आछी रचनावां री उम्घ्मीद राख सकै। इण लेखै हाल म्घ्हैं राजस्घ्थानी रचनाकारां रै सुभाव अर व्घ्यवहार में कीं औरूं संजीदगी री उम्घ्मीद राखूं। नवा लेखक राजस्घ्थानी भासा री असल सगती बणै, इण पेटै वांनै खूब लिखणौ चाहीजै, आपरै परिवेस नै बारीकी सूं देखै-परखै अर आपरै अणभव-जगत रौ विस्घ्तार करै, साथै ई आपरी परंपरा अर संस्घ्कृति री विरासत सूं गाढौ रिस्घ्तौ पण राखणौ चाहीजै। बाकी तौ आपौ-आप री उूरमा है।




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