सरूवात तौ है पण अंत कोनीं : बादळ



बंतळ-
राजस्थानी भासा रा नामी लिखारा रायसिंहनगर वासींदा श्री मंगत बादळ दंदफंद सूं आंतरै आपरै लगौलग लेखन कारणै बीजी भांत ओळखीजै। वांरी खूब पोथ्यां है। अठ वांसूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ दीरीजै।

साहित्य री जातरा कांनी पगलिया मांडती बगत दिमाग में कांई के हौ?
साहित्य री आ जातरा म्हैं कोई सोच-समझनै सरू कोनीं करी। जद आखर ग्यांन हुयौ तौ पढणै री लगन लागी। जैड़ी ई पोथी मिलती पढ लेवतौ। कदै मन में विचार आवतौ के म्हैं ई लिखनै देखूं, लिख देवतौ। औ तौ कदै सोच्यौ ई कोनीं हौ के इण भांत लिख्यां कोई लेखक हुय जावै। लिख्यां अेक आनंद री अनुभूति हुवती इण कारण लिख लेवतौ। म्हारौ विचार है साहित्य लेखन री सरूवात भावना सूं हुवै। चिंतण तौ भावनावां रै लारै-लारै आवै। होळै-होळै म्हैं स्वांतः सुखाय लिखतौ गयौ। लिखेड़ै नै छपणै तांणी भेज्यौ। कदै छप्यौ, कदै पाछौ आयग्यौ। लिखणै-छपणै री प्रक्रिया कीं बधी तौ म्हारै सरीखा केई और साथी मिल्या जद समझ में आई के म्हैं साहित्य री जातरा रौ जातरी बणग्यौ। आज सोचूं इण जातरा री सरूवात तौ है पण अंत कोनीं। मर्यां ई अंत हुवै। जिकौ इण जातरा नै बिचाळै तज देवै, उणरी मौत ई समझौ।
राजस्थानी अर हिंदी में बरौबर लेखन। भासाई खेंचतांण नीं हुवै?
श्रीगंगानगर जिलौ अेकांनी तौ अंतरराष्ट्रीय सींव सूं जुड़ेड़ौ है अर दूजै कांनी पंजाब अर हरियाणा सूं। अठै हिंदी अर राजस्थानी साथै-साथै गुरुमुखी ई धड़ल्लै सूं बोली अर समझी जावै। म्हैं गुरुमुखी में ई व्यंग्य लिख्या है, जिका गुरुमुखी री सिरै पत्रिकावां में छप्या है। म्हारौ सोचणौ है के विसयवस्तु आपरी भासा अर विधा खुद-ब-खुद सोध लेवै। जे आप ईमानदारी सूं लेखन कर्यौ है तौ आपनै खुद री रचना रौ अेक भासा सूं बीजी में अनुवाद करतां घणौ जोर आयसी। आप जिकी भासा में रचना करौ उणरै मुहावरै री जे आपमें पकड़ है तौ भासाई खेंचतांण आप साम्हीं कोनीं आवै। हां! आप जे सोचसौ हिंदी में अर लिखसौ राजस्थानी, गुरुमुखी के किणी बीजी भासा में, तौ भासाई खेंचतांण हुयसी। थोड़ै अभ्यास री बात है। राजस्थानी रा घणकरा लेखक साथै-साथै हिंदी में ई लिखै।
साहित्य री लगैटगै विधावां में आप लिख्यौ। घणचावी विधा कुणसी है?
म्हैं आप साम्हीं पैली ई अरज करी ही के विसयवस्तु आपरी विधा खुद ढूंढ लेवै। जियां पांणी आपरी ढलांण खुद-ब-खुद सोध लेवै। जिकै बगत म्हैं जैड़ी विधा में लिखूं वा चावी ई लागै। औ सवाल म्हारै सूं केई लोगां बूझ्यौ है। कांई बतावूं? अेक बाप रै केई संतान है। उण सूं बूझां के कुणसौ आछौ लागै तौ वौ कांई बतावै। म्हारौ मन गीत, कविता, कहाणी, व्यंग्य, निबंध आद सगळी विधावां में बरौबर रमै। म्हैं पण खुद नै किणी विधा में पारंगत कोनीं मानूं। अेक बात जरूर है जिकै दिनां कहाणी लिखूं, कविता के निबंध कोनीं लिख सकूं। इणरौ कारण स्यात् औ ईज हुयसी के रचना कोई बीजौ हस्तखेप बरदास्त कोनीं करै।
अजै तांणी राजस्थानी में पोथीगत रचाव?
राजस्थानी में म्हारी पैली पोथी ‘रेत री पुकार’ कविता संग्रै 1988 में छपी। इण पछै 2004 में ‘दसमेस’ महाकाव्य छप्यौ जैड़ौ चर्चित ई हुयौ। हरियाणा पंजाब साहित्य अकादमी इणरौ उल्थौ पंजाबी में ई करवायौ। इण छंदोबद्ध रचना रौ अनुवाद पंजाबी रा जाणीजता रचनाकार गुरमेल मडाहड़ कर्यौ। इण पछै सन् 2008 में ‘मीरां’ प्रबंध काव्य छप्यौ। इणरौ अनुवाद ई पंजाबी भासा में वाल्हा केसराराम कर्यौ है। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली कांनी सूं अनुवाद कराइजौ है। 2009 में अेक साथै दो पोथ्यां ‘कितणो पाणी’ अर ‘भेड़ अर ऊन रो गणित’ छपी। 2010 में ललित निबंध संग्रै ‘सावण सुरंगो ओसर्यो’ अर 2012 में ‘बात री बात’ आया। ललित निबंध री पोथी ‘हेत री हांती’ बेगी ई। कविता पोथी, गीत पोथी अर आलोचनात्मक आलेखां री पोथी त्यार है।
पुरस्कारां री विगत ई लांबी हुयसी?
अकादमियां कांनी सूं अर संस्थावां कांनी सूं घणां ई मिलग्या पण आदमी धापै कद है? सोचै केई दिन हुयग्या। लोगड़ा भूलग्या दीसै? म्हनै सै सूं पैली हिंदी कविता संग्रै ‘इण मौसम में’ माथै राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर कांनी सूं ‘सुधींद्र पुरस्कार-1992’ मिल्यौ। इण बरस ई कादम्बिनी पत्रिका कांनी सूं व्यंग्य माथै ‘संभावना पुरस्कार’ मिल्यौ। भारतीय साहित्य कला परिषद कांनी सूं ‘गौरीशंकर शर्मा साहित्य सम्मान-2001’ मिल्यौ। 2004 में कनाडा कांनी सूं ‘राजस्थान कैनेडियन एसोसियेसन’ दीरीजौ। सन् 2005 में राजस्थान पत्रिका ‘कर्णधार सम्मान’ दीन्हौ। सन् 2006 में ‘दसमेस’ महाकाव्य माथै राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ‘सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार’ दीन्हौ। 2008 में राजस्थान पत्रिका रौ ‘सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार’ मिल्यौ। सृजन साहित्य संस्थान, श्रीगंगानगर कांनी सूं 2009 रौ सनमांन मिल्यौ। 2010 में ‘मीरां’ प्रबंध काव्य पर साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रौ राजस्थानी सारू पुरस्कार मिल्यौ। 
अठै आयनै बतावणौ चावूं के म्हनै कविता, कहाणी, व्यंग्य अर जातरा-विरतांत माथै पुरस्कार मिल्या। अठै आयनै विधा झौड़ निवड़ै।
बीजी भारतीय भासावां बिचाळै राजस्थानी?
बीजी भारतीय भासावां बिचाळै राजस्थानी नै समग्रता सूं देखां तौ घणी जस जोग थिति है। भासाविद् सुनीति कुमार चाटुज्र्या अर कवि रवींद्र नाथ ठाकुर सरीखां इण भासा री जी खोलनै बडम करी है। इणरौ अतीत महान है। विजयदांन देथा बिज्जी सरीखै राजस्थानी लेखकां रै नांव नोबल पुरस्कार तांई नामांकित हुवणौ इण भासा रै गौरव गरिमा नै दरसावै। इण कारणै हरेक राजस्थानी छाती ठोकनै गीरबै सूं सिर ऊंचै करै के म्हारी मायड़भासा राजस्थानी किणी सूं लारै कोनीं।

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