कवि बाजण री हूंस ही : भाटी


बंतळ-
 
राजस्थानी भासा रा आधुनिक कवि जठै नवी कविता री अतुकांत पुट माथै जोर देयनै कविता री धारा बदळी, वठैई केई कवि अैड़ाई है जका नवी कविता साथै डिंगळ रौ लगाव जोड़तां थकां परंपरा अर आधुनिकता रौ रस संचरायौ। अैड़ाई अेक बाजींदा कवि है- डाॅ. आईदानसिंह भाटी। अठै वांसूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ दीरीजै।

राजस्थानी कविता रै आंगणै आपरा पगलिया किण भांत मंडया?
म्हारी सरुवाती साहित्य जातरा में डिंगल कविता सूं जुड़ाव व्हियौ। म्हनै लागतौ के कविता अमरता री निसांणी है जिका कवि संसार में नीं है वांरी कवितावां अजैई लोग सुणै अर गुणै। बालपणै ई माटसाब दुर्गादानजी अेक कविता रटायनै मंच माथै ऊभौ कर दीन्हौ। लोगां साबासी दीन्ही तौ म्हैं कवितावां रटण लागौ। छठी के सातवीं क्लास रै आसपास अेकक कविता लिखी। स्यात् पैली  ‘म्हैं सुणियौ कान लगा जद, झूंपङियौ कै औरां नै’ ही। इणी गत ‘गीता रौ ग्यान’ अर दूजी इतिहासां रै आख्यानां माथै कवितावां लिखी, जिण में अेक ‘धाप धाप नै कै दौ धोरां’ कविता ई है। म्हनै सेठियाजी री कविता ‘पातळ अर पीथल’ सागै रामधारीसिंह री कविता ‘श्री कृष्ण का दूत कार्य’ कंठस्थ ही। इण भांत कविता बाळपणै सूं म्हारै साथै ही।
म्हारी ‘हंसतोड़ै होठां रौ साच’ कविता ‘हेलो’ पत्रिका में पैली छपी। म्हारा बेली-मींत म्हारी कविता नै सरावता। म्हैं गोष्टियां में सुणावता। कवि बाजण री हूंस ही। इण हूंस म्हनै कवि बणा दीन्हौ। म्हनै श्रोतावां पाठकां रौ लाड  मिळियौ। 
परंपरागत राजस्थानी कविता बिच्चै लोकराग थरपणै कांनी बधती बगत मन में कांई कथीजै हौ?
नवी कविता रै दायरै में सत्यप्रकास जोशी, तेजसिंह जोधा आद केई कवियां लय पकड़ी। इण बात नै आपां आगै इयां बधायसा के भाव आपरी भाषा खुद लेयनै आवै। म्है म्हारी भाषा में ई कविता लिखी, किणी दूजै री नकल नीं कीन्ही। हां, म्है हरीश भादाणी, नारायण सिंह भाटी, सत्यप्रकाश जोशी रै भावां सूं प्रभावित व्हियौ।
खुद री कविता नै नवी धारा बिच्चै कठै देखौ?
म्हनै कविता में छंद लुभावतौ। पछै म्है मुक्त छंद में ई कविता लिखी। वै चावी व्ही। मंचां सारु कीं गजलां ई लिखी। म्हनै पक्कौ विश्वास है कै शब्द अमर व्है। हां, आ बात न्यारी है के अमरता जैड़ी बातां तकनीक रै इण जुग में बेकार है। किताबाँ जरूर बचेला अर कदै न कदै, कोई न कोई समानधर्मा उण नै मिळैला। भवभूति री दांई म्हैं ई सोचूं। कीं सपना तौ देखणां ई चाईजै। इणसूं जूंण फूठरी गुजरै।
कवि साथै-साथै आप काॅलेज शिक्षा सूं ई जुड़îा रैया। वठै रा तजरबा? 
म्हनै अेक शिक्षक रै रूप में घणोई जस मिळियौ। म्हारै विद्यार्थियां सूं मिलणवाळौ मांन म्हारी पूंजी है। 
बीजा केई कांम ई ओढ्या?
साक्षरता में लेखक अर सन्दर्भ व्यक्ति रै रूप में काम कीन्हौ। मानीता सत्यदेवजी बारहठ म्हनै साक्षरता सूं जोडि़यौ। नेशनल बुक ट्रस्ट री कार्यशालावां में ई भागीदारी निभाई। नेशनल बुक ट्रस्ट म्हारी किताब ई छापी।
राजस्थानी आलोचना नै किण भांत निरखौ?
आज री राजस्थानी आलोचना सिलसिलेवार अर सिस्टेमैटिक कोनीं। आथूणां पैमानां लेयनै जकी कूंत करीजै वा राजस्थानी साहित्य माथै खरी नीं बैठै, क्यूंकै आपणी भासा री रळक अर लकब न्यारी है। आपणी भासा फगत सांस्कृतिक दरसाव ई नीं राखै, जीवण री डूंगाई ई राखै। इणी कारणै वींरै साहित्य री कूंत करती बगत कीं पैमानां खुद रा लेवणां पड़सी। गीत अर मंचीय कविता माथै बरसां पैलां कीं टिप्पणियां करीजी ही। वींनै अजै तांणी आलोचना रै नांव माथै ठरड़ीजै, जद के वौ आलोचना रौ हिस्सौ कोनीं। आज रा वाजिंदा आलोचक पोथी-परख नै ई आलोचना रौ तमगौ देयनै ढोल बजावै। हकीकत में पोथी-परख ई आलोचना नीं हुया करै। हां, कीं बीच-बिचाळै ‘दौर अर दायरौ’ जसजोग आयौ। पण वीं बगत रौ मोल बेसी नीं कूंतीजौ। टाॅप फोर, टाॅप टेन आद टीवी री भासा आपणी आलोचना री भासा कोनीं। आपणौ छंद है अर वींरौ रेफरेंस आवणौ चाहीजै। आधुनिक राजस्थानी साहित्य रौ मूल्यांकन राजस्थानी मांयली सब्दावली सूं ई हुय सकै है। आपणै अठै जकौ जूंनौ साहित्य है, वींरौ हाल तांणी आलोचनात्मक मूल्यांकन नीं हुयौ। वींरौ विवेचनात्मक अर इतियासू मूल्यांकन ई हुयौ है। वीं मांयली धार अर संवेदणां री कूंत नीं हुयी। आधुनिक ढाळै कविता, कहाणी, उपन्यास माथै तौ बात कमती-बेसी करीजी, पण बीजा हिस्सा कठैई गमग्या। आलोचना में हाल खूब कांम री जरुत है।
राजस्थानी री नवी पीढी कांनी देखौ तद?
राजस्थानी में कविता री अक पूरी री पूरी युवा पीढी साम्हीं ह। ‘मंडाण’ कविता री पोथी जिकी नीरज दइया सम्पादित करी है, वा विस्वास जगावै। थे खुद इणी विस्वासू पीढी रा दस्तखत हौ।
अजै तांणी पोथी भांत?
कविता री च्यार किताबां ‘हंसतोड़ा होठां रौ साच’, ‘रात कसूम्बल’, ‘आंख हींयै रा हरियल सपना’ अर ‘खोल पांख नै खोल चिङकली’। हिंदी में तीन किताबां ‘थार की गौरव गाथाएं’, ‘शौर्य-पथ’ अर ‘समकालीन साहित्य और आलोचना’ रै नांव सूं आई है।
इनांम-इकरांम ई खासा मिल्या?
मांन-सनमान लेखक नै टेमसर मिळ जावणा चाइजै। म्हैं तौ प्रतिरोधी लेखक री जूंण जियौ। इण सारू मांन-सनमांन री परवाह नीं कीन्ही। हां, ऊमर रै साठवैं बरस में अकादमियां म्हारी षष्टिपूर्ति कर दीन्ही। बियां माळावां पैरणी तौ चैखी ईज लागै।
कीं संदेस?
मां-मायङभोम अर मातभासा नै  सै सूं सिरै मानौ।



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