छंदबद्धता अर छंद मुगती रचनाकार री मनगत रौ झौड़ : शारदा कृष्ण


बंतळ-


राजस्थानी भासा अर वैदिक संस्कृत रौ सगपण मानीजै। संस्कृत अर राजस्थानी दोनुवां में पारंगत कवयित्री शारदा कृष्ण सूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री बंतळ करी। अठै वा दीरीजै।

  राजस्थानी अर संस्कृत दोनूं भासावां में आपरौ रमाव है? वैदिक संस्कृत साथै राजस्थानी रै सगपण सूं बात सरू करां तौ?
  आदू भासा संस्कृत अर मायड़भासा राजस्थानी म्हारै अंतस तांणी राची-माची है। औ रमाव टाबरपणै सूं ही भासा अर सबदां रौ मूळ सोधण री अेक हेरावू हूंस रौ प्रतिफळ कैयौ जाय सकै। म्हारी दादी, नानी जितरी बात-कैबत-ओखाणां आपरी बोलीचाली मांय बरत्या करती, म्हैं वांरौ मूळ संस्कृत मांय म्हारै मत्तै सोधती रैवती अर अलेखूं राजस्थानी सबदां रो मूळ संस्कृत मांय सोधनै म्हैं राजी हुय जावती। तद सूं ई जूंनी राजस्थानी अर वैदिक संस्कृत रौ सगपण म्हारै हीयै ढूकतौ गयौ। वैदिक संस्कृत वेदकालीन लोक-भासा ही जिकी आपणी मायड़ मरुभासा रै साव नैड़ी नजीक है।
 
संस्कृत री काळजीत रचनावां रौ आप राजस्थानी मांय उल्थौ ई करयौ। वीं बगत कांई मनगत रैयी?
  राजस्थानी रै रळकै मांय वैदिक संस्कृत रा लोकरंग ठौड़-ठौड़ मुळकै अर आपसरी में अेक सैजोर सांस्कृतिक साम्य ई राखै। कवि कालिदास रै ‘शांकुतलम्’ रै उल्थै बगत अैड़ा केई भाव अर भासा रा साम्य म्हारै साम्हीं आया। राजस्थानी रा केई सबद जिका वेद सूं सीधा इण भासा मांय समाया, वै वैदिक भासा अर संस्कृति सूं राजस्थानी रौ ठायौ-ठरकौ जुड़ाव आपां रै साम्हीं परगटावै। वेद रौ सबद ‘जनिता’ (मायत) राजस्थानी में ‘जणीता’ है। संस्कृत रौ ‘आहिण्ड्यते’ (व्यर्थ भटकना) राजस्थानी मांय ‘हांडतौ फिरै’ बरत्यौ जावै। कृषक-करसौ, अन्तरंगत्वा-आंतरै जायनै, ईदृर्शा-इसौ, उज्झिला-ऊजणनै, अरण्यं-अरणी, अवगुण-औगण, शुन्यं-सूनौ, अवलम्ब्यतै-लूमै, दृश्य-दरसाव, भणति-भणै, विक्लव-बेकळ, दास्यति-देयसी, निश्चित-नचीतौ अर अैड़ा और ई खासा सबद आं दोनूं भासावां रौ साव साम्य परगटावै। संस्कृत रौ सूक्ति-सौंदर्य आपणै अठै री कैबतां मांय सागी भाव परगटै। सहायक क्रिया रै प्रयोग बिना वाक्यार्थ ग्रहण संस्कृत अर राजस्थानी में ई हुवै, हिंदी में नीं। अर नीं ई अंगरेजी में। जियां सः गच्छति (संस्कृत), वौ जावै (राजस्थानी), वह जाता.....?
  सबदावू बदळाव अर अरथ भेद रौ झौड़ रैवै उल्थै में, आप कांई मानौ?
  कोरौ सबदावू बदळाव उल्थै री माटी कर न्हाखै। भाव अर अरथ नै अंगेजतां थकां ई उल्थै में पद अर वाक्य री साम्यता सोधी जाय सकै। सबदावू बदळाव पेटै मूळ लेखक रै भावां री बलि नीं दीरीजणी चााहीजै। वींरौ भाव अर तात्पर्य साव समचै पाठक तांणी पूगावणौ उल्थैकार री मोटी जिम्मेदारी हुवै। सबद अर अरथ रा बिछोवा नीं तौ मूळ में धिक्कै अर नीं उल्थै में।
  कविता ई आपरै रचाव आंगणै हैं? कित्ती पोथ्यां पाठकां रै निजर है?
  म्हारौ मनचायौ व्यसन कविताई ई है। कविता री पोथी छपणौ अर फेर वींरौ बांच्यौ जावणौ कितरौ अबखौ कांम है, थांरै सूं छानौ कोनीं। पण कविता रौ वजूद अभिव्यक्ति अर सिरजणा रै सीगै सै सूं बेसी चाहीजतौ रैवतौ आयौ है, अर रैयसी। मिनख री जूंण-जातरा कविता अर गीत री लय-ताल बिना अधूरी है। राजस्थानी मांय म्हारी अेक पोथी ‘धोरां पसर्यो हेत’ प्रकाशित है।
  कविता री बात करां तौ बीजी भारतीय भासावां री कविता बिचाळै राजस्थानी कविता?
  बीजी भारतीय भासावां री कविता बिचाळै राजस्थानी कविता आपरी सबळी पिछांण राखै। बगत अर काळ री हरेक महतावू, टिकावू अर महान् कविता वा हुवै जिण मांय वीं बगत री समकालीन चिंतावां, अबखाया अर आजादी सूं पैली अर आजादी मिल्यां पछै सिरजण रै सरोकारां री ऊंची-नीची घाटियां अर बदळाव नै अंगेजती थकी आज री प्रगतिसीलता अर जुगबोध सूं जुड़ी थकी है।
 नवी कविता री सरूवात आप कठै सूं मानौ?
  नवी कविता रा आगीवांण गणेशीलाल व्यास उस्ताद, मेघराज मुकुल, कन्हैयालाल सेठिया, चंद्रसिंघ, रेवंतदान, सत्यप्रकाश जोशी अर हरीश भादाणी जैड़ा लोग पैली पांत में गिणीजै। इण धारा री दूजी पीढी मांय तेजसिंह जोधा, मणि मधुकर, सांवर दईया, नंद भारद्वाज, ओंकार पारीक, पारस अरोड़ा, सीपी देवल, प्रेमजी प्रेम, भगवतीलाल व्यास, ज्योतिपुंज, आईदानसिंह भाटी, मोहन आलोक, कृष्ण कल्पित, भंवर भादानी सरीखा कवियां नै गिणाय सकां। तीजी नवी पीढी में राजस्थानी प्रयोगवादी कविता लगौलग रची जाय रैयी है।
छंदबद्ध अर छंदमुगत रौ झौड़ हाल कांई सळटग्यौ? 
छंदबद्धता अर छंद मुगती म्हारी समझ में रचनाकार री मनगत रौ झौड़ है। छांदस कविता ‘मुगती’ में दुख पावै अर मुगत-भाव छंदां में बंधनै बिहूंजै। भावां री ऊपज जठै लयबद्ध हुवै वठै छंदां री जाजम बिछै अर मुगत-चिंतण जठै अनुशासित रागात्मकता अंगेजै वठै मुगत छंद कुंडळी मारै।
विधागत लगाव री बात करां तौ आप सै सूं नैड़ै किण विधा रै?
सिरजण री सगळी विधावां म्हानै रुचै। पण गीत अर कविता सूं म्हारौ मा-जायौ हेत है। बियां म्हैं अनुवाद, संपादन-संकलन रौ कांम ई कर्यौ है।
   आज रौ साहित्य फिरोळां तौ?
  आज रौ साहित्य आज रै समाज रौ दरपण है। समाजू हळगत आछी-माड़ी जिसी ई हुवै साहित्य मांय आवै ई आवै पण आपणौ काव्य-शास्त्र जितरा काव्य-दोख गिणाया है, वां सूं साहित्य नै बचायौ राखणौ साहित्यकार री मोटी जिम्मेदारी है।

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