दुनिया री भासावां बिचाळै राजस्थानी गीरबैजोग भासा: गोइन्का

बंतळ-


राजस्थानी भासा रा लिखारा श्याम गोइन्का प्रवासी रचनाकार हैं। वै चूरू भौम रा सपूत है अर अबार बैंगलूरू रैवै। आप कमला गोइन्का फाउण्डेशन रा मुख्य ट्रस्टी हैं। श्री श्याम गोइन्का सूं युवा साहित्यकार दुलाराम सहारण री करीजी बंतळ अठै दीरीजै।



कमला गोइन्का फाउण्डेशन आज साहित्यिक छेतर में खासकर राजस्थानी छेतर में भारतीय ज्ञानपीठ, भारतीय भाषा परिषद आद री भांत साख राखै। इणरी थरपणा अर ध्येय री विगत?
1994 में मातुश्री री ओळूं में इणरी थरपणा करी। वीं बगत समाज सेवा रौ ध्येय सिरै हौ। पण 1999 में साहित्य छेतर में फाउण्डेशन पगलिया धर्या। सै सूं पैलौ पुरस्कार फाउण्डेशन सरू कर्यौ वौ हौ 51 हजार रौ मातुश्री कमला गोइन्का राजस्थानी साहित्य पुरस्कार। जकौ अबार एक लाख ग्यारह हजार अेक सौ ग्यारह रिपिया रौ है। होळै-होळै लोग जुड़ता गया। योजनावां बधती गयी अर बात बणती रैयी। म्हारौ मानणौ है के मातभौम अर रैवास भौम दोनूं सूं जुड़्यौ रैवणौ चाहीजै। फाउण्डेशन औ कांम करै। हिंदी, कन्नड़, तेलुगू आद छेतर ई फाउण्डेशन रै खाकै में है। 
अेक कांनी तौ साहित्य पुरस्कार योजनावां अर दूजी कांनी समाज उपयोगी विकास कारज?
म्हैं मानूं के मिनख जित्तौ कीं कर सकै, मतलब वींरी खिमता हुवै, वौ करणौ चाहीजै। परमात्मा री म्हर रैयी के सुरसत साथै लिछमी रौ ई जोड़ हुयौ। इणी दाखलै में बडेरां री ओळूं में राजकीय गोपीराम गोइन्का उच्च माध्यमिक विद्यालय, मातुश्री कमला गोइन्का टाऊन हाॅल, पितामह बसेसरलाल गोइन्का खुला रंगमंच, आनंद जलधारा, बसेसरलाल गोइन्का मार्ग आद जका चूरू में है, म्हारै कड़ूम्बै रौ मातभौम लगाव  है। धरती सूं जुड़्यौ रैवण रा ओळाव है। वठैई बैंगलूरू, मुम्बई आद केई जिग्यां जठै-जठै म्हे रैवां, कीं न कीं करवावता ई रैवां।
बिणज अर साहित्यिक जुड़ाव दोनूं। निभाव कियां हुवै?
म्हैं मानूं के मिनख रै मांय जे किणी छेतर री रुचि नीं हुवै तौ उण छेतर आंगणै निभाव नीं हुय सकै। म्हारी लिखण री बांण इयां कैवूं के साहित्यिक रुचि कारण ई फाउण्डेशन रै मारफत साहित्यिक योजनावां रौ जोड़ रैवै। बियां ई पुरखां री परंपरा सूं चालतौ बिणज ई म्हारै अंग बसै। म्हारै जीवण में अै दो हिस्सा कोनीं, अेक ई है। दोनूं हीयै बसै। सौरौ-सौरौ निभाव हुवै।
रचाव री बात करां तौ?
नसबंदगी, गंजत्व दर्शन, लोढी मोडी मथरी, गादड़ो बड़ग्यौ, बनड़ा रौ सौदागर, ठा नीं सा, अंवेर आद पोथ्यां म्हारै रचाव री साख भरै। कमला गोइन्का फाउण्डेशन कांनी सूं अेक सालीणी पत्रिका ‘हास्यम्-व्यंग्यम्’ ई सरू है। गजलां कांनी ई लारलै दिनां झुकाव रैयौ। आजकालै आध्यात्मिक कवितावां रचाव में है। अध्यात्म सूं नाकै हुयनै रचूं तद व्यंग्य अर हास्य हरेक ओळी में रमतौ-सौ मत्तौमत्त आय जावै।    
आध्यात्मिक जुड़ाव ई आप साथै जुड़ै?
पुण्य स्मरण, प्रणय प्रलाप, नमामि कल्याणसुंदरम आद म्हारी पोथ्यां है जकी म्हैं ‘हमराही’ नांव सूं लिखी। अध्यात्म सूं म्हारौ परिवार सदां सूं जुड़ेड़ौ है। पुरखां रौ जस है। म्हारौ ई अध्यात्म सूं लगाव है। साहित्य रै मारफत अध्यात्म रचूं तौ जी सौरौ हुवै।
विपश्यनाचार्य पद्मभूषण सत्यनारायण गोइन्का री साधना साथै आपरौ लगाव?
बियां दोनूं मां जाया भाई हा। सत्यनारायण म्हारौ बडौ भाई हौ। पितातुल्य हौ। पण म्हारी विचारधारा भिन्न हैं। वै विपश्यना मार्गी हा, विपश्यना रा अंतरराष्ट्रीय नांव हा। पण इण मामलै में म्हारी नीं मिली। म्हैं कट्टर ईश्वरवादी हूं। म्हैं जकी साधना करूं वा आनंदमार्गी योग साधना है। जकी कै ईश्वर आधारित है। प्रपत्तिवाद आधारित है।

टाबरपणै री कीं ओळूं?
म्हे 1937 सूं 1942 तांणी मांडले, बर्मा रैया। वठै जापानियां रै हस्तखेप पछै म्हारौ कड़ूम्बौ चूरू बावड़्यौ। म्हैं टाबर हौ। अठै आयनै स्कूल भरती हुयौ। चूरू रै सरदार विद्यालय में गणित रा मास्टर ढूंकळ गुरुजी री मार आज ई याद आवै। म्हारौ अेक जबरौ बेली हौ मुश्ताक, सहपाठी हौ, जकौ आज ई ओळूं रै आंगणै रमै। पण वीं पछै आज तांणी मिल्यौ कोनीं।
फाउण्डेशन साथै कड़ूम्बै रौ लगाव अर भावी योजनावां?
परिवार रौ म्हारै प्रयासां प्रति हरमेस साथ है। वां कदैई किणी बात रौ विरोध कोनीं कर्यौ। बेटा, बहुवां लगौलग जुड़ाव में है। बहू ललिता तौ खुद लिखै। फाउण्डेशन पेटै सोचूं के केई फाउण्डेशन मुख्य आदमी रै जायां पछैई ध्येय सूं नाकै हुयग्या। कोई आदमी अमरोती खायनै तौ आवै कोनीं। इणी कारणै म्हारी मनसा है के म्हैं इत्तौ चजाव तौ करनै जावूं के म्हारै पछैई सगळी योजनावां इयां ई चालती रैवै। भावी योजनावां री बात करां तौ साहित्य रै छेतर में 31 हजार रिपिया रौ ‘स्नेहलता गोइन्का राजस्थानी लेखिका पुरस्कार’ सरू करां। वठैई चूरू में 15-20 लाख रिपिया री लागत सूं अेक गेस्ट हाउस बणावणै कांनी हां।

राजस्थानी भासा अर साहित्य सारू सोच?
म्हैं मानूं कै मां, मायड़ भौम अर मातभासा रौ मिनख कदैई करजौ नीं उतार सकै। मातभासा री बात करां तौ मिनख वींरै ओळै-दोळै संस्कारी बणै। दुनिया नै देखै, समझै। राजस्थानी भासा तौ दुनिया री भासावां बिचाळै गीरबैजोग भासा है। म्हैं इणरी सबद खिमता माथै लट्टू हूं। अेक अरथाव हजारूं सबदां में परगटीज सकै। अैड़ी भासा माथै हरेक नै मोहीजणौ चाहीजै। इण भासा रौ साहित्य सबळौ है। लिखारा खुद रा पिस्सा लगायनै पोथ्यां छपावै। आ बात के कम बडमजोग है? खूब लिखीजै। खूब पढीजै। आस करूं।



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