डूंगर-धोरों पर जागृति की स्वर लहरियां बिखेरती राणी का महाप्रयाण

                                                                                                                        
लोक साहित्य की थाती पर विराटता का भव्य महल खड़ा करने की कवायद युग-युगों से निरंतर है। राजस्थानी लोक साहित्य तो इस समृद्धता को द्विगुणित करता रहा है। यहां का लोक सृजक, गायक और संगीतज्ञ है। बातों की धूनी रमाना यहां के लोक का चित्त प्रकटन है। यहां झौंपड़ी हो या महल, लोक बातपोसी की ताजपोसी करता रहा हैं। इसी ताजपोसी में ताजिंदगी लगी शख्सियतों में राजस्थानी की प्रख्यात साहित्यकार राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत का नाम गौरव से लिया जाता है। 24 जून, 1916 को माता नंदकुंवर झाला और पिता विजयसिंह देवगढ के यहां जन्मी लक्ष्मीकुमारी ने परिवेशजन्य बंधनों की परवाह न करते हुए स्वाध्याय का मार्ग चुना और साहित्यिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक हलकों में ऐसा मुकाम बनाया कि आज उनका जाना निस्संदेह समग्र बौद्धिक समाज के लिए पीड़ा जनक है। 
आधुनिक राजस्थानी साहित्यिक समग्रता में जिन गिने-चुने नामों का उल्लेख किया जाता है उनमें रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत का नाम शामिल है। खासबात यह है कि यह नाम जीवन फलक पर दो-धाराओं में समान रूप से प्रवाहित होता रहा। रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ने जितना श्रम साहित्यिक संस्कारों के संचयन, विस्तारण हेतु किया, उससे कहीं अधिक राजनीति के माध्यम से विधानसभा,संसद और संगठन के लिए भी किया। 
राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत के पिता विजयसिंह देवगढ ठिकाने के ठिकानेदार थे। हालांकि यह वंशानुगत उत्तराधिकार नहीं था। ठिकानेदार रावतकिशन ने उन्हें गोद लिया था। इसी परिवेश में वे सामंत शासक, रईस और सत्ता केन्द्रित धूरी के धनी थे। लक्ष्मीकुमारी को भी इसी साये में संपूर्ण सुख-सुविधाएं मिली जो राजपरिवार के बच्चों को मिलती हैं। नौकर, चाकर, ऐशो-आराम। परंतु लड़कियों की शिक्षा और उनके स्वच्छंद भ्रमण पर अंकुश था और लक्ष्मीकुमारी चाहते हुए भी उन बेड़ियों को नहीं तोड़ पाई। नौ-दस साल की अवस्था हो आने पर घर पर ही आपकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध किया गया। भाई संग्रामसिंह को पढाने मेयो काॅलेज सेे देवी चारण आते थे। घर पर शिक्षा-दीक्षा रूपी इसी व्यवस्था के हिस्से मानिंद देवी चारण ही लक्ष्मीकुमारी और छोटी बहिन खुमाण कंवर को भी अंग्रेजी पढाने लगे। वहीं पंडित पन्नालाल संस्कृत, मुंशी जाफरअली उर्दू भाषा के मोती सौंपने लगे। महेशदान आसिया ने संरक्षक की हैसियत से लौकिक संस्कार अर्पित किए।
लक्ष्मीकुमारी के पिता रावत विजयसिंह बात सुनने के शौकीन थे। उनके यहां जोगदान चारण नियमित अंतराल से बात सुनाने आते थे। बहीभाट परम्परा का यह संगम था। जोगदान चारण द्वारा ऊंचे स्वर में कही जाने वाली बातें और उन पर लगते हूंकारे लक्ष्मीकुमारी चूंडावत को भी प्रभावित करते। इसी कड़ी में आगे चलकर मोदूलाल चारण भी जुड़े। अध्ययन की शृंखला में कानपुर से प्रकाशित होने वाला दैनिक वर्तमान भी आ जुड़ा। इसी के साथ चांद, माधुरी, सरस्वती, भविष्य जैसी पत्रिकाएं भी जुड़ी और ये सब लक्ष्मीकुमारी के जीवन में क्रांति के सूत्र स्थापित करने में सफल रहीं। मन आजादी की धारा की ओर बढने लगा। परंतु इसी बीच सन् 1934 में लक्ष्मीकुमारी का विवाह रावतसर-बीकानेर के रावत तेजसिंह के साथ हो गया। वहां का परिवेश भी राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत के लिए अनुकूल रहा। ससुर रावत मानसिंह को बीकानेर रियासत द्वारा किले में छोटी-सी बात के लिए नजरबंद किया जाना, एक ऐसी घटना थी, जिसने क्रांति को और मुखरित किया। लक्ष्मीकुमारी महात्मा गांधी से मिलने के लिए शिमला भी गई। अजमेर में स्वतंत्रता संग्राम के कई योद्धाओं से लगाव हुआ। 1947 में आजादी आई। 
आजादी के बाद रियासतों के ठिकानेदारों को सरकारी सेवाओं में आने के अवसर दिए गए। राणी लक्ष्मीकुमारी के पति रावत तेजसिंह सरकारी सेवाओं में आ गए। रावत तेजसिंह सहायक कमिश्नर देवस्थान, सहायक कलक्टर एवं प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट आदि पदों पर रहे। इसी बीच 1935 में घनश्यामसिंह, 1936 में सुभद्रा, 1938 में रूपमणि, 1942 में उमाशशि, 1944 में बलभद्रसिंह तथा 1950 में राज्यश्री का संतानों के रूप में आना हुआ। 1952 के आम चुनाव आने तक राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत पारिवारिक परिवेश में लीन रही। परंतु 1957 का आम चुनाव उन्हें आंदोलित करने से चुका नहीं। भारत के राजनीतिक कार्यकर्ताओं से आपके सम्पर्क पहले से ही थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की अनुशंसा पर 1957 में राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ने अपने पीहर सटते क्षेत्र भीम से विधानसभा चुनाव लड़ा। यह वह युग था जब राणी ने लम्बे समय से काबिज परदा प्रथा का परित्याग करते हुए जन-आंदोलनों और धरने-प्रदर्शनों का वरण किया था। ऐसे में कौटम्बिक, सामाजिक बहिष्कार की स्थिति तो नहीं बनीं, परंतु विरोध के स्वर मुखर हुए। पूरा समाज इस कड़ाई से चुनाव में उनके विरोध में लग गया। विरोधियों की यह कोशिश थी कि सामाजिक मर्यादाओं का उल्लघंन कर प्रगतिशीलता की ओर बढने वाली राणी लक्ष्मीकुमारी हर हाल में हारे। परिणाम भी वही आया। परंतु अगला चुनाव 1962 में यहां से जीता। 1967 में भीम से ही विधानसभा में फिर से पहुंचीं। सन् 1972 में राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुनी गई। 1980 के आम चुनाव में भीम से ही आपने पुनः विधासभा चुनाव लड़ा और जीता। 
राणी लक्ष्मीकुमारी चुडावत की निडर, मेहनती, प्रगतिशील छवि से प्रभावित होकर केन्द्रीय नेतृत्व ने उन्हें 1972 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी। 1972 का विधानसभा चुनाव प्रदेश में कांग्रेस ने आपकी अगुवाई में लड़ा। प्रदेश अध्यक्ष रहते 180 सीटों में से 145 सीटें आना आपके लिए उल्लेखनीय था। राजस्थान विधानसभा में 11 वर्ष तक आपने सभापति की हैसियत से कार्य संचालन करते हुए भी अमिट छाप छोड़ी। 
यही नहंी राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ, राजस्थाना इंडिया-चाइना मैत्री संघ, भारत-सोवियत मैत्री संघ, अखिल भारतीय सैनिक संगठन, नारी जागृति परिषद, शांति एकजुटता परिषद, साहित्य अकादेमी, राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी आदि संस्थाओं के साथ राणी लक्ष्माकुमारी चूंडावत ने काम करते हुए अपनी श्रमशीलता और बौद्धिक क्षमता का दिव्य प्रदर्शन किया।
राजनीतिक उठा-पटक के बीच साहित्य सृजन भी निरंतर रहा। बचपन में जोगदान चारण से सुनी बातों और आगे चलकर गुजराती के लोक साहित्य मर्मज्ञ झेवरचंद मेघाणी की साधना से प्रभावित होकर राणी लक्ष्मीकुमारी ने लोक-साहित्य की राजस्थानी धुन आलापी। सन् 1957 में इसी धुन पर ‘मांझल रात’ संग्रह आया, जोकि उनकी साहित्य साधना का प्रथम उपलब्धिमूलक सोपान था। लोक साहित्य में बात, गीत और गाथा प्रमुख हैं। राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ने इन सभी पर जमकर काम किया। मूमल, अमोलक बातां, के रे चकवा बात, राजस्थानी लोकगाथा, राजस्थान की प्रेम गाथाएं, राजस्थान की रंगभीनी कहानियां, देवनारायण बगड़ावत की महागाथा, राजस्थानी लोकगीत, रजवाड़ी लोकगीत, राजस्थान के सांस्कृतिक लोकगीत आदि पुस्तकें इस बात की साक्षी हैं। 
चूंडावत ने लोक साहित्य के साथ-साथ मौलिक दृष्टि और अनुवाद की क्षमता को सांगोपांग फलित किया। बाल साहित्य के अछूते संदर्भों को भी छुआ। वहीं राजस्थान की संस्कृति संवाहक राजस्थानी भाषा के लिए आजीवन संघर्षरत रही। संवैधानिक मान्यता का संकल्प हर कदम का ध्येय रहा। फलित होना, न होना, संयोग-दुर्योग हो सकता है परंतु राणी लक्ष्मीकुमारी की साधना नित्य इस ओर रही। इसी साधना के बीच भारत सरकार ने उन्हें 1984 में राजस्थानी साहित्यिक सेवाओं के लिए ‘पद्मश्री’ से भी अंलकृत किया। राजस्थान सरकार ने 2012 में उन्हें ‘राजस्थान रत्न’ दिया। वहीं अनेक संस्थाओं ने अपने उल्लेखनीय पुरस्कारों से नवाजा। आपने बीस से अधिक देशों की यात्राएं भी की। इन यात्राओं के संस्मरण उनकी पुस्तकें ‘हिन्दू कुश के उस पार’ तथा ‘शांति के लिए संघर्ष’ में मौजूद हैं।
बचपन से लेकर अंतिम समय तक राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत साहित्य के साथ-साथ महिला उत्थान के लिए भी संकल्पबद्ध रही। खासकर अपने समाज की महिलाओं को आंदोलित किया और उन्हें मुख्य धारा में आने के लिए प्रोत्साहित किया। लम्बी अवस्थाा के बाद जब 24 मई, 2014 को राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत का देहावसान हुआ है तब कहा जा सकता है कि राणी के क्रांतिकारी कदम सामाजिक अवदान के रूप में सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। राजस्थान के साहित्यिक और राजनीति लोग तो उन्हें भूला ही नहीं पाएंगे। उनका योगदान अतुलनीय है। विनम्र श्रद्धांजलि।
रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत: पुस्तकें

1. मांझल रात :  राजस्थानी कथा संग्रह   : 1957
2. मूमल ः राजस्थानी कथा संग्रह ः 1959
3. अमोलक बातां ः राजस्थानी कथा संग्रह ः 1960
4. गिर ऊंचा-ऊंचा गढ़ां ः राजस्थानी कथा संग्रह ः 1960
5. के रे चकवा बात ः राजस्थानी कथा संग्रह ः 1960
6. राजस्थानी लोकगाथा ः राजस्थानी कथा संग्रह ः 1966
7. राजस्थान की प्रेम गाथाएं ः राजस्थानी प्रेमकथाओं का हिन्दी अनुवाद: 1966
8. राजस्थान की रंगभीनी कहानियां: राजस्थानी प्रेमकथाओं का हिन्दी अनुवाद: 1986
9. हुंकारा दो सा ः राजस्थानी बालकथा संग्रह ः 1957
10. टाबरां री बातां ः राजस्थानी बालकथा संग्रह ः 1961
11. गांधी जी री बातां ः राजस्थानी बालकथा संग्रह ः 1962
12. बात करामात ः हिन्दी बाल कथा संग्रह ः 1981
13. हिन्दू कुश के उस पार ः यात्रा संस्मरण ः 1959
14. शांति के लिए संघर्ष ः यात्रा संस्मरण ः 1966
15. अंतरध्वनि ः गद्य गीत ः 1948
16. देवनारायण बगड़ावत महागाथा: राजस्थानी लोकगाथा ग्रंथ ः 1977
17. रवि ठाकर री बातां ः रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बांग्ला कहानियों का राजस्थानी अनुवाद: 1961
18. संसार री नामी कहानियां ः इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, अमेरिका इत्यादि देशों के रचनाकारों की कहानियों का अनुवाद: 1966
19. सूळी रा सूया माथै: जुलियस फुचिक री पुस्तक ष्छवजम तिवउ ळवससवूेष् का राजस्थानी अनुवाद: 1966
20. गजबण: रूसी प्रतिनिधि कहानियों का राजस्थानी अनवुाद ः 1978
21. लेलिन री जीवनी ः लेनिन की जीवनी का राजस्थानी अनुवाद: 1970
22. कवीन्द्र काव्य लतिका ः संपादित ः 1958
23. राजस्थान का हृद्य ः संपादित ः 1956
24. राजस्थानी दोहा संग्रह ः संपादित ः 1960
25. राजस्थानी के प्रसिद्ध दोहे-सोरठे: संपादित ः 1961
26. राजस्थानी लोकगीत ः संपादित ः 1961
27. रजवाड़ी लोकगीत ः संपादित ः 1981
28. राजस्थान के सांस्कृतिक लोकगीत: संपादित: 1985
29. जुगल विलास ः संपादित ः 1958
30. वीरवाण ढाढी बादर री बणायो: संपादित ः 1960
31. सांस्कृतिक राजस्थान ः हिन्दी निबंध संग्रह: 1994
32. थ्तवउ चनतकं जव चमवचसम ः आत्मकथा, संपादन- फ्रासेस टेफ्ट, अंग्रेजी: 2000
33. राजस्थान के रीति-रिवाज ः हिन्दी निबंध ः 2002

पुरस्कार-सम्मान:

1. मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन, बम्बई, 1960
2. सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार-1995 (इण्डो-सोवियत सांस्कृतिक सोसाइटी द्वारा ‘हिन्दू कुश के उस पार’ पुस्तक पर भारत की सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कर-कमलों द्वारा।)
3. विशिष्ट साहित्य सम्मान-1972 (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा)
4. राजस्थान रत्न - 1976 (राजस्थान भाषा प्रचारिणी सभा, अजमेर द्वारा)
5. दीपचंद नाहटा पुरस्कार-1977 (राजस्थानी रत्नाकर, दिल्ली द्वारा)
6. सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार-1976 (यूएसएसआर सरकार द्वारा रूसी कहानियों के अनुवाद ‘गजबण’ पर भारत के उपराष्ट्रपति हिदायत उल्ला खान के कर-कमलों द्वारा)
7. झेवरचंद मेघाणी स्वर्ण पुरस्कार-1979 (लोक संस्कृति शोध संस्थान, चूरू द्वारा अहमदाबाद में ‘बगड़ावत देवनारायण महागाथा’ पर)
8. राणा कुम्भा पुरस्कार-1982 (महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन, उदयपुर के तत्वावधान में महाराणा भगवतीसिंह जी के कर-कमलों द्वारा)
9. पद्मश्री-1984 (भारत सरकार द्वारा राजस्थानी साहित्य और संस्कृति के विशिष्ट योगदान पर)
10. साहित्य महोपाध्याय उपाधि-1988 (साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा)
11. नाहर पुरस्कार-1992 (बम्बई)
12. लखोटिया पुरस्कार-1993 (रामनिवास आशारानी लखोटिया ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा राजस्थानी साहित्य में योगदान पर)
13. सरस्वती पुरस्कार-2001 (एनएमकेआरयू काॅलेज, बैंगलोर द्वारा समग्र लेखन पर)
14. डाॅक्टर आॅफ लिटरेचर-2002 (कोटा खुला विश्वविद्यालय, कोटा द्वारा)
15. महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार-2003 (राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा राजस्थानी साहित्य के समग्र योगदान पर)
16. गोइन्का राजस्थानी साहित्य सारस्वत सम्माना-2005 (कमला गोइन्का फाउण्डेशन, मुम्बई द्वारा राजस्थानाी साहित्य में समग्र योगदान पर)
17. राजस्थान रत्न-2012 (राजस्थान सरकार द्वारा साहित्यिक योगदान हेतु)

     - दुलाराम सहारण

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